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डॉ. कुसुमलता केडिया के बारे में

स्वदेशी अर्थचेतना की संवाहक डॉ. कुसुमलता केडिया का जन्म दो जुलाई, 1954 को पडरौना (उ.प्र.) में हुआ। इनके पिता श्री राधेश्याम जी संघ के स्वयंसेवक थे। उन्होंने नानाजी देशमुख के साथ गोरखपुर में पहले ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ की स्थापना में सहयोग किया था। द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी इनके ननिहाल में प्रायः आते थे। घर में संघ विचार की पत्र-पत्रिकायें भी आतीं थीं। अतः इनके मन पर देशप्रेम के संस्कार बचपन से ही पड़ गये। कुसुमलता जी प्रारम्भ से ही पढ़ाई में आगे रहती थीं। 1975 में उन्होंने स्वर्ण पदक लेकर अर्थशास्त्र में एम.ए. किया। इसके बाद इनका विवाह हो गया। पर किसी कारण यह सम्बन्ध चल नहीं सका। 1980 में वे काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हो गयीं। पर किताबी ज्ञान के साथ वे गरीबी का कारण और उसके निवारण का रहस्य भी समझना चाहतीं थीं। जब वे बड़े अर्थशास्त्रियों के विचारों की तुलना धरातल के सच से करतीं, तो उन्हें वहां विसंगतियां दिखाई देतीं थीं। अतः उन्होंने इसे ही अपने शोध का विषय बना लिया। 1984 में उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टर’ की उपाधि प्राप्त की। इस अध्ययन के दौरान उन्होंने देखा कि भारत आदि जिन देशों को पिछड़ा कहा जाता है, उनके संसाधनों को लूट कर ही पश्चिम के तथाकथित विकसित देश समृद्ध हुये हैं। इस प्रकार उन्होंने गांधी जी और प्रख्यात अध्येता श्री धर्मपाल के विचारों को एक बार फिर तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया। अब उन्हें यह जिज्ञासा हुई कि पश्चिमी देशों को इस लूट और संहार की प्रेरणा कहां से मिली ? इसके लिये उन्होंने यूरोप का इतिहास पढ़ा। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इसके पीछे ईसाई मान्यताएं हैं। प्राचीन यूरोप में भारत जैसी बहुदेववादी सभ्यतायें अस्तित्व में थीं, पर ईसाई हमलावरों ने 400 वर्ष में उस सभ्यता और संस्कृति को पूरी तरह नष्ट कर दिया। यह अध्ययन उन्होंने अपनी पुस्

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डॉ. कुसुमलता केडिया की पुस्तकें

 कम्युनिस्ट चीन : अवैध अस्तित्व

कम्युनिस्ट चीन : अवैध अस्तित्व

"यह अल्पज्ञात तथ्य है कि चीन का ‘चीन’ नाम भारत का दिया हुआ है। चीन तो स्वयं को झुआंगहुआ कहता है। इससे भी अल्पज्ञात तथ्य यह है कि महाभारत काल में चीन भारत के सैकड़ों जनपदों में से एक था। प्रशांत महासागर के तट पर पीत नदी के पास यह लघु राज्य भारत से हजा

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 कम्युनिस्ट चीन : अवैध अस्तित्व

कम्युनिस्ट चीन : अवैध अस्तित्व

"यह अल्पज्ञात तथ्य है कि चीन का ‘चीन’ नाम भारत का दिया हुआ है। चीन तो स्वयं को झुआंगहुआ कहता है। इससे भी अल्पज्ञात तथ्य यह है कि महाभारत काल में चीन भारत के सैकड़ों जनपदों में से एक था। प्रशांत महासागर के तट पर पीत नदी के पास यह लघु राज्य भारत से हजा

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