उस दिन सुबह कुरुक्षेत्र में सेनायें युद्ध के लिए पूर्ण रूप से तैयार थीं। पाण्डवों के मन में यह संदेह था न जाने आज कौन सा योद्धा मृत्यु को प्राप्त होगा। सभी अपने हैं। और अपनों की पीड़ा को कैसे सहन किया जाये युधिष्ठिर अपने भाईयों की तरफ देखते तो कभी अपनी सेना कि तरफ देखते अभिमन्यु को देखकर उनका साहस और बढ़ता था।
पंक्तियां
रण में पहुँचे सब सूर वीर ।
कोई कसे प्रत्यंचा कोई ताने तीर ॥
सेनाएं कुरुक्षेत्र निहार रहीं।
कौरव लड़ने को हुए अधीर ॥
कुरुक्षेत्र में सभी योद्धा पहुँच चुके थे । दोनों सेनाए
आमने-सामने खड़ी थीं कौरव युद्ध के लिए उतावले हो रहे थे। क्योंकि उनके पास भारत वर्ष की सबसे बड़ी सेना नारायणी सेना थी। और पितामहा भीष्म, गुरु द्रोण, अंगराज कर्ण जैसे महान योद्धा थे ।
पंक्तियां
अभिमन्यु ने आशीर्वाद लिया।
सेना को अपने साथ लिया ||
युद्ध नीतिआज सिखाने को।
गोविंद ने लम्बा संवाद किया।
कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए जाने से पहले अभिमन्यु ने अपने माता- पिता का आशीर्वाद लिया और आशीर्वाद लेने के लिए वह श्रीकृष्ण के पास पहुँचे तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें युद्ध के नियम बताये और यशस्वी भव होने का आशीर्वाद दिया।
युद्ध प्राराम्भ हो गया सभी महारथी योद्धा युद्ध करने लगे कौरवों ने आज युद्ध की राजनीति प्राराम्भ कर दी अर्जुन से युद्ध करने के लिए त्रिगर्ता नरेश को भेज दिया अर्जुन त्रिगर्ता नरेश कि सेना का नाश करते करते कुरुक्षेत्र से काफी दूर आ चुके थे।
कौरवों ने यह देखा की अर्जुन काफी दूर जा चुका है। तो उन्होने चक्रव्यूह का निर्माण कर दिया जिसे ध्वस्त करने का सामर्थ सिर्फ अर्जुन के पास था। अब युद्ध की स्थिति यह आ चुकी थी यदि उस चक्रव्यूह को न तोड़ा गया तो वह चक्रव्यूह पांण्डवों की सेना का विनाश कर देगा और पाण्डवों की पराजय हो जाती ।
इस स्थिति को देखते हुए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश करना स्वीकार किया। लेकिन अभिमन्यु सिर्फ छः द्वारों को तोड़ने कि विद्या जानते थे।
पंक्तियां
यह कैसा निर्णय तत्काल हुआ।
जैसा सोचा न वैसा हुआ ।
त्रिगर्ता कि, सेना से लड़ने ।
अजुर्न शीघ्र प्रस्थान हुआ !!
त्रिगर्ता की सेना से युद्ध करने के लिए अर्जुन जा चुके थे अब चक्रब्यूह तोड़ने का दायित्व सिर्फ अभिमन्यु पर था।
पंक्तिया
वो युद्ध हुआ कुछ इस प्रकार ।
सेना में मच गया हाहाकार।।
अभिमन्यु का तेज था अग्नि समान।
जलते जाते हैं। व्यूह के द्वारा।।
अभिमन्यु ने इतनी गति से युद्ध किया कि चक्रव्यूह के द्वारो को जलाते चले गये कौरवों की सेना में हाहाकार मच गया व्यूह के अंतिम द्वार पर कौरवों समेत अन्य महारथी भी मौजूद थे। और उन सब योद्धाओं ने मिलकर अभिमन्यु का वध कर दिया।
पंक्तियां
कौरवों ने फिर जो बार किया ।
अभिमन्यु का संघार किया।।
देह से वह गई सब रक्त धार।
प्रतिघात किया जब बार बार।।
काल बना वह चक्रव्यूह।
गिर गया धरा पर अभिमन्यु।।
आज कुरुक्षेत्र कि इस रणभूमि पर एक और योद्धा बलिदान हो गया जो बिना विद्या जाने ही युद्ध के लिए चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया। अपनी सेना और पराजय को जय में बदलने के लिए आभिमन्यु का महाभारत के युद्ध में बहुत बड़ा योगदान रहा।