गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान' की साहित्यिक रचनाएँ पढ़ें. ... चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है. चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है. चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं. इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है. है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है. ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है. गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर. हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है. जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता. ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है. है शिकायत , कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो. जो कबाहत की किसी ने तो खतर होने को है. पा निजामत की नियामत जो सखावत छोड़ दे. वो मलामत ओ बगावत की नजर होने को है. शान 'हिन्दुस्तान' की कोई मिटा सकता नहीं. सरफ़रोशों की न जब कोई कसर होने को है. गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान' (कवि एवं साहित्यकार)