आँखों की रोशनी
जाती रही है
चूल्हों में कंडी
लगाती रही है
नातियों के मुख पर
बैठी हुई मक्खियाँ
फटे हुए आँचल से
उड़ाती रही है
फटी हुई उम्मीदें
फटी हुई एड़ियाँ
आशाओं के धूल से
छुपाती रही है
जीवन भर जो
दुःख की गठरी
ह्रदय पर अपने
उठाती रही है
वह जिंदगी के सामने
चीत्कार करती रही
और जिंदगी उसपर
मुस्कुराती रही है
किसी ने सोचा नहीं
इनके लिए कभी
तनाव भरी हवा
हमेशा रुलाती रही है
वृद्धा पेंसन योजना
ये जानती भी नहीं
सरकार वोटों के लिए
कहानियाँ सुनाती रही है