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गाँव की गरीब बुढ़िया

19 अप्रैल 2016

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आँखों की रोशनी

जाती रही है

चूल्हों में कंडी

लगाती रही है

नातियों के मुख पर

बैठी हुई मक्खियाँ

फटे हुए आँचल से

उड़ाती रही है

फटी हुई उम्मीदें

फटी हुई एड़ियाँ

आशाओं के धूल से

छुपाती रही है

जीवन भर जो

दुःख की गठरी

ह्रदय पर अपने

उठाती रही है

वह जिंदगी के सामने

चीत्कार करती रही

और जिंदगी उसपर

मुस्कुराती रही है

किसी ने सोचा नहीं

इनके लिए कभी

तनाव भरी हवा

हमेशा रुलाती रही है

वृद्धा पेंसन योजना

ये जानती भी नहीं

सरकार वोटों के लिए

कहानियाँ सुनाती रही है

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चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

प्रासंगिक रचना !

19 अप्रैल 2016

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रचनाएँ
prabhavani
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शब्दों का कलरव
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कलयुगी अच्छाई

19 अप्रैल 2016
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आज बुलावा आया है,मंत्री जी ने बुलाया हैबड़बोले जी, खुश हो नाचे ले चले वे चमचे, चाचे बोतल आज बंटेगी राजानोट भी खूब लहायेंगे,कल बूथ कैप्चरिंग मेंदंगल खूब मचाएंगे,सौ लोगों का झुण्ड दिखाकरमंत्री जी का पैर छुआफिर से आपहि बनें मंत्री,करते थे सब यही दुआमंत्री जी की बत्तीसी,बड़बोले जी का झोला,पहले खुली उनकी

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गाँव की गरीब बुढ़िया

19 अप्रैल 2016
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आँखों की रोशनीजाती रही हैचूल्हों में कंडीलगाती रही हैनातियों के मुख परबैठी हुई मक्खियाँफटे हुए आँचल सेउड़ाती रही हैफटी हुई उम्मीदेंफटी हुई एड़ियाँआशाओं के धूल सेछुपाती रही हैजीवन भर जोदुःख की गठरीह्रदय पर अपनेउठाती रही हैवह जिंदगी के सामनेचीत्कार करती रहीऔर जिंदगी उसपरमुस्कुराती रही हैकिसी ने सोचा न

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मै सब जानती हूँ

19 अप्रैल 2016
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मेरे हांथों में सूखी रोटीतुम जाते हो पांच - सितारामेरे बच्चों के,दांतों के पोरों मेंरोटी धंसती हैमेरे पतितुम्हारे नसेड़ी औलादों केचार चक्कों पर , चिपक करचीख भी नहीं पातेऔर उनकी साँसेंसड़क के गड्ढे भरने वालीकंक्रीटों की तरहबिखर जाती हैंऔर जब मेरी मांग का सिन्दूरमेरे ही पति के लहू सेधोया जा रहा होता ह

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आत्महत्या शान्ति नहीं

19 अप्रैल 2016
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कर लिया है आज वरणमृत्युलोक  से ओझल चरण  प्राप्त क्या होगी तुझे शान्ति यह तेरे मन की है भ्रान्ति ना हो पाया तू मर्यादितकुछ भी न कर पाया निर्धारितनहीं ह्रदय  जन का आकर्षिततेरे ठहरे विचार कुत्षितस्व जीवन का तू मारानहीं सम्पूर्ण था दुःख सारायदि संघर्षरत रहता बेचारातू भी होता जग का प्यारामृत्युलोक से हुआ

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