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♧गरीब ब्राह्मण का भाग्य♧

3 सितम्बर 2022

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एक समय की बात है, मदनपुर गाँव में शंकर नाम का एक निर्धन,विद्वान,ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी लक्ष्मी और उसका एक लड़का विजय था। वह अपने परिवार का पालन-पोषण अलग-अलग गाँव में जाकर यज्ञ-हवन, पूजा-अर्चना करके करता था। इतना परिश्रम करने के बाद भी उसके घर से दरिद्रता दूर नहीं हो रही थी। बड़ी मुश्किल से दो वक्त के खाने का इंतजाम हो पाता था, शंकर अक्सर बहुत परेशान रहता और सोचता रहता कि कैसे अपने परिवार की निर्धनता दूर करूँ।


हे भगवान! कुछ ऐसा चमत्कार कर दे, जिससे मैं और मेरा परिवार हँसी-खुशी और सुख-शांति से रहने लगे। एक बार शंकर पास के ही गाँव में सत्यनारायण भगवान की कथा कराने जा रहा था, तभी रास्ते में उसे किसी के चिल्लाने की आवाज आयी। तो वह रुककर जहां से आवाज आ रही थी, उसी तरफ गया, तो देखा एक बूढ़ी औरत कीचड़ में फँसी हुई थी। बहुत मेहनत करने के बाद भी वह निकल नहीं पा रही थी, तो शंकर ने जाकर बूढ़ी माँ को एक रस्सी के सहारे कीचड़ से बाहर निकाला।


शंकर ने पूछा आप यहाँ कैसे फँस गई, तो बूढ़ी औरत बोलती है - "मैं यहाँ लकड़ी लेने आयी थी, तभी अचानक मेरा पैर फिसल गया और मैं कीचड़ में जाकर गिर गई। बहुत-बहुत धन्यवाद बेटा, जो तुमने मुझे बाहर निकाला। परंतु तुम इतने चिंतित क्यों लग रहे हो?" शंकर बोलता है - "हम्मा मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं, लोगों के यहां पूजा-पाठ करके बड़ी मुश्किल से दो वक्त के खाने का इंतजाम कर पाता हूं।"


भगवान पता नहीं मेरी कैसी परीक्षा ले रहे हैं। तभी बूढ़ी औरत बोलती है - "भगवान पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा। जल्दी ही तुम्हारे अच्छे दिन आएंगे और इतना कहकर बूढ़ी औरत अपनी लकड़ियों का गट्ठर लेकर वहां से चली जाती है। शंकर भी वहां से कथा वाले घर चला जाता है। जब वह लौट रहा होता है, तभी अचानक उसकी नजर एक चमचमाती वस्तु पर पड़ती है। वहां जाकर वह देखता है, तो वहां पर सोने से भरा हुआ,एक घड़ा रखा था। शंकर मन ही मन बहुत प्रसन्न होता है। और भगवान को धन्यवाद कहता है, कि हे भगवान आपने मेरी सुन ली।


वह उस घड़े को एक कपड़े में बांधकर घर ले जाता है। और घर जाकर लक्ष्मी को सारी बात बताता है, तो लक्ष्मी बोलती है - "यह सब बूढ़ी अम्मा की वजह से हुआ है। वह हमारे लिए फरिश्ता बनकर आयीं। धीरे-धीरे समय बीतता गया और शंकर एक संपन्न, अमीर ब्राह्मण बन गया। यह देखकर बहुत से गांव वाले उससे जलने लगे और सोचने लगे, शंकर इतनी जल्दी इतना अमीर कैसे हो गया? कुछ समय पहले तक तो, इसके पास दो वक्त का खाना भी नहीं रहता था।


उसी गांव में एक कालू नाम का व्यक्ति रहता था, जो शंकर से बहुत ज्यादा घृणा करता था। उसने सारे गांव में बात फैला दी, कि शंकर ने कहीं से चोरी की है। इसी वजह से इतने कम समय में वह इतना अमीर हो गया। धीरे-धीरे बात आग की तरह सारे गांव में फैल गई और सभी लोग शंकर को चोर कहने लगे। सभी सरपंच को जाकर शंकर को गांव से निकालने की बात बोले, तो सरपंच ने गांव के बुजुर्ग लोगों को बुलाया और उनसे पूछा तो लोगों ने कहा, कि ऐसे किसी पर बेवजह आरोप लगाना सही नहीं है। पहले इसकी छानबीन की जाए, कि आखिर शंकर इतने कम समय में इतना अमीर कैसे हो गया। उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाए। 



निर्णय लिया गया कि शंकर का जो सबसे खास मित्र शंभू है, उसी को यह काम सौंपा जाए। शंभू को बुलाकर शंकर के बारे में पता करने को कहा गया, तो शंभू मान गया। शंभू, शंकर का बहुत ही खास दोस्त था परंतु वह एक लालची इंसान था। वह अक्सर शंकर के यहां जाता रहता था, एक दिन शंभू, शंकर के घर गया और पूछने लगा, कि यार शंकर तू अचानक इतना अमीर कैसे हो गया? तूने इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं बताया। क्या तू मुझे अपना दोस्त नहीं समझता.? तो शंकर बोलता है - "ऐसी कोई बात नहीं है, तू तो मेरा सबसे खास दोस्त है। कभी ऐसा मौका ही नहीं मिला, कि तुझे यह बात बता सकूं। उसके बाद शंकर ने सारी बात शंभू को बता दी। शंभू के मन में लालच आ गया, वह उस घड़े को चुराने के बारे में सोचने लगा। थोड़ी देर और बातें करके शंभू अपने घर लौट गया। रास्ते में उसे कालू मिला तो कालू बोला - "भाई संभू कहां से आ रहे हो? लगता है,अपने खास मित्र के यहां गए थे।" शंभू - "हां! बस कुछ जरूरी काम था, इसलिए गया था।" कालू - "ऐसा क्या जरूरी काम था?"


शंभू सोचने लगता है, कि अगर इसको बात बता दूं तो यह मेरे काम आ सकता है, बदले में इसे थोड़ा-बहुत सोना दे दूंगा। वैसे भी यह चोरी-चकारी के मामलों में बहुत आगे है। उसके बाद शंभू, कालू को सारी बात बता देता है। दोनों निर्णय लेते हैं, कि आज रात हम शंकर के यहां के घड़े को चुरा लेंगे। उन दोनों में मित्रता हो गई। यह बात वैसी ही हुई - "चोर-चोर मौसेरे भाई।"


रात के समय दोनों शंकर के घर चोरी करने के लिए गए। घड़े को जैसे ही वह उठाने लगे, तो अचानक घड़ा वहां से गायब हो गया। उनको ऐसा लगने लगा, कोई उनको बहुत जोर-जोर से पीट रहा है, तो वह मार की वजह से चिल्लाने लगे। उनकी आवाज से शंकर और उसकी पत्नी जाग गए। शंकर और उसकी पत्नी वहां आए, और देखा तो शंकर और कालू कहां पर थे। 

उनकी हालत बहुत ही दयनीय थी, ऐसा लग रहा था, किसी ने उनकी बहुत जोर-जोर से पिटाई की हो।


शंकर बोलता है - "तुम लोग यहां कैसे? लगता है घड़े को चुराने आए थे, परंतु यह घड़ा कोई साधारण घड़ा नहीं है। यह चमत्कारी घड़ा है, जो तुम जैसे दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोगों के पास कभी नहीं आएगा। और शंभू तुमको मैंने अपना मित्र समझा, परंतु तुमने इस दुष्ट प्रवृत्ति वाले कालू से मित्रता करके साबित कर दिया, कि "चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं।" अगर तुम लोग चाहते हो, कि मैं गांव वालों को ना बुलाऊँ तो निकल जाओ मेरे घर से। और दोबारा मत आना।

उसके बाद कालू और शंभू ने कभी शंकर के बारे में कभी बुरा नहीं सोचा। किसी ने सही कहा है - "जैसी करनी, वैसी भरनी।" शंभू और कालू को उनके कृत्य का फल मिल गया था, और वह भी अब सुधर गए थे।

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