लरज़ के आंख का मिलना तिलमिलाना भी
बहुत नफ़ीस हैं तेरी तरह बहाने भी
अदाए शोख़ से न कहना मुस्कुराना फिर
इशारे देख समझ लेते हैं सब दिवाने भी
वो एक लम्हा शबे वस्ल की इनायत का
तवील ख्वाब के कम हैं जिसे ज़माने भी
हया से आंख का झुकना मचलना दिल का
छुपाये छुपते कहां इश़क़ के ख़ज़ाने भी
कभी ये दिल है मेरा और मेरा दिल ही कभी
बड़ै सटीक उदू के मगर निशाने भी
तुम्हें ए शाह सितमगर लगे है ये दुनिया
चराग़ जलने न पाया लगे बुझानेभी
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी