इस शीर्षक का चयन तथा लेख की प्रेरणा आचार्य श्री धर्मेंद्र जी की जिस रचना से मिली उसकी चुनी हुई पंक्तिया भी आपके लिए प्रस्तुत है :
कलयुग ने क्या खेल रचा, कामुकता का ग़दर मचा,
विज्ञापन में सिर्फ त्वचा, गुण ज्ञापन में सिर्फ त्वचा,
अखबारों में, बाज़ारों में, दूरदर्शन में सिर्फ त्वचा,
कन्याओं से वृद्धाओं तक, अजब कर रही असर त्वचा,
बैचेनी या चैन सभी का, केवल एक उपाय त्वचा,
बोल्ड्नेस का अर्थ त्वचा, कोल्ड्नेस का मतलब, रूखी, सूखी, व्यर्थ त्वचा,
काम वासना की सुरसा ने, निगल, सभी को लिया पचा,
सावित्री को, सीता को, माँ सम परम पुनीता को, पहना बिकनी दिया नचा,
मानवता के ओ मनुपुत्रो, अब भी लो अस्तित्व बचा,
त्वचा भोग की भूख छोड़ कर, बाकी कुछ भी नहीं बचा,
- आचार्य श्री धर्मेंद्र जी
उपरोक्त पंक्तिया हमसे कुछ कहती है, हमें सचेत करती है, हम जानते भी है, मानते भी है, चर्चा भी करते है, मगर वो नहीं करते जो हमें करना चाहिए, अख़बार, टीवी, पत्रिका, सिनेमा, गाने, फेसबुक, विज्ञापन, कपड़े या व्हाट्सप्प सब तरफ अश्लीलता लार टपकने वाली आकर्षक पैकिंग में सहज सुलभ है. एक मेनका ने विश्वामित्र की जीवन भर की तपस्या को कलंकित कर दिया था. आज तो पोर्न स्टारों की फौज घर घर में नृत्य कर रही है. सरकार बलात्कार को समाप्त करने के लिए कानून बना रही है, मगर इसके कारणों पर मौन है.
कोई आपत्ति करता है तो नारी अधिकारों का मुद्दा सामने आ जाता है, नारी का सम्मान बिल्कुल होना चाहिए। लड़को से भूल नहीं होनी चाहिए। लड़को से भी प्रश्न पूछे जाने चाहिए। लड़को को संयमित रहना चाहिए। ये बाते सर्वथा उचित है, किन्तु जब सात सहेलियाँ खड़ी खड़ी फरियाद सुनाती हो, जब मस्त मस्त चीज बताया जाता हो, जब स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाले एक विशेष वस्त्र के पीछे क्या है ? पूछा जाता हो, जब जाड़ा में खटिया सरकाने की बात हो, जब शीला जवान होती हो, जब मुन्नी बदनाम होती हो, जब फेविकोल से फोटो चिपकाने की बात होती हो, जब हमारा सेंसर बोर्ड इन्हे पास करता हो, जब ऑटो से लेकर फेरारी तक में ये फ़िल्मी गाने बजते हो तब कौन दोषी है, चिंता इस बात की करनी होगी।
स्त्रियों के वस्त्रो पर ऊँगली उठती है तो उस ओर से तर्क आते है मै चाहे ये करुँ, मैं चाहे वो करूँ, मेरी मर्जी, आप कौन होते है, आप अपने काम से काम रखिये। ये जवाब सुनने को मिले तो टोकने वाला अपमानित होने से अच्छा चुप रहना समझता है. लेकिन एक बात निश्चित है स्त्री का शील ही उसका धन है, पता नहीं क्यों, लोग अपनी तिजोरी को खुला छोड़कर, चोर को नैतिकता से रहने की सीख नहीं देते, सारे चोरो से अपील करे, भाइयों में मेरा धन कहीं भी खुल्ला छोड़ू, आप कृपया अपने पर संयम रखे.शायद ही कोई भी इस प्रकार धन को खुल्ला रखने का समर्थन करेंगे, अगर वो धन जिसे पुनः कमाया जा सकता है, को खुल्ला नहीं छोड़ सकते तो, फिर ऐसे धन के लिए मेरी मर्जी की छूट क्यों ? जिसके लुट जाने के बाद, कमाने की तो छोड़िये, ऐसे कलंक को धोना भी असंभव होता है. दूसरी बात बाजारवादी व्यवस्था के कारण शायद सौम्य वस्त्र मिलते भी नहीं है, क्योंकि फैशन के आकर्षक फिल्मीकरण के कारण, कलाकारों जैसे दिखने की चाह ने, वैसी ही मांग पैदा करवा दी, तथा बाज़ार ने, मांग के अनुरूप पूर्ति आरम्भ कर दी.
फिल्मो के गानो, कहानी, अंग प्रदर्शन पर, टोकने पर फिल्मकारों से एक ही जवाब मिलता है. हम तो वो दिखाते है जो समाज मे घटता है, या ये कहानी की जरुरत है इत्यादि, संभव है उनकी बात ठीक हो, तो क्या समाज में सिर्फ त्वचा प्रदर्शन ही होता है, अगर किसी खास वर्ग में होता भी हो तो उसे स्क्रीन पर चाशनी लगा कर सारे विश्व को परोस कर संदेश क्या दे रहे है, वास्तविकता तथा काल्पनिकता में बड़ा भारी अंतर है फिल्मो में ३ घण्टे में ३ पीढ़ियों की कहानी आ जाती है मगर वास्तविकता में असंभव है. दर्शन शास्त्र पर आधारित प्रेम को प्रदर्शन शास्त्र में रूपांतरित करने की होड़ मचा रखी है. अगर देह प्रदर्शन सफलता का पैमाना होता तो, सफलतम फिल्मो की कतार में जिस्म जैसी फिल्म तथा सफलतम नायिकाओं की गिनती में परवीन बॉबी, सिल्क स्मिता, जैसी महिलाये होती तथा गुमनामी में दम नहीं तोड़ती, जिन्होंने पैसे कमाने के लिए, सुर्खियां बटोरने के लिए इस रास्ते का चयन किया, सर्वेक्षण के नतीजे देखिये अमुक महिला विश्व की सबसे सेक्सी महिला चुनी गयी, सेक्सी का शाब्दिक अर्थ हुआ कामुक, चयनित महिला इसपर गर्व प्रकट करती है. पता नहीं वो महिला इस का अर्थ क्या लगाती है, जरुरत इस सोच के प्रति नजरिया बदलने की है.
समाचार पत्र प्रसारण संख्या तथा समाचार चेनल टी.आर.पी. बढ़ाने की होड़ में, समाचार में यौन अपराध की रिपोर्टिंग इस प्रकार के अपराध पर जागरूक करने के लिए करते है.मगर इन पर आने वाले विज्ञापन क्या त्वचा प्रदर्शन का प्रदूषण नहीं फैला रहे. सारी दुनिया वायु, जल, जंगल तथा ध्वनि प्रदुषण पर चिंतित है रोकने के लिए अरबो रुपये के बजट, सैकड़ो कार्यालय, लाखो कर्मचारी लगे हुए है. दूसरी तरफ त्वचा प्रदुषण को बढ़ावा देने पर अरबों रुपये सौंदर्य प्रतियोगिता पर, इत्रों के, कंडोम के कामुक विज्ञापन पर खर्च हो रहे है. सरकार भी एड्स से बचने के लिए कई सम्बन्ध नहीं बनाने की सलाह नहीं देती, बल्कि कई सम्बन्धो से एड्स न हो जाये इसलिए निरोध उपयोग करने की सलाह देती है,
प्रचार तथा सुर्खियों के लिए एक महिला ने क्रिकेट में विश्व कप जितने पर निर्वस्त्र होने की घोषणा की. दूसरी ने तो दोहरे शतक लगने पर अपनी निर्वस्त्र फोटो ही फेसबुक पर अपलोड कर दी. किस ऑफ़ लव का कारवा केरल से आरम्भ हुआ,विरोध हुआ, कोलकाता में केरल में हुए विरोध के, विरोध में, सफलतापूर्वक सम्पन्न होते हुए बेंगलुरु पहुँच गया । कुछ नया करने की चाह में हम वो सब कर रहे है जो अक्सर गलियों में एक वफादार कहे जाने वाला पशु करता दीखता है.
इस निर्लज्ज प्रदुषण के कारण परिवारो के मर्यादित सम्बन्ध, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के सम्बन्ध, नियोक्ता तथा कर्मचारी के सम्बन्ध, संतों तथा शिष्यों के सम्बन्ध संदेह के घेरे में है. संदेह की स्थिति के कारण दाम्पत्य बंधन, लीव इन रिलेशनशिप की पीड़ा झेल रहा है, बचपन कराह रहा है. युवा अवसाद, नशा तथा भटकाव के रास्ते पर है. आत्महत्या, तलाक, कन्या भ्रूण हत्या तथा यौन अपराध के आंकड़े साल दर साल बढ़ रहे है. बुजुर्ग चुप है, सरकार बिल पास कर सकती है, फ़ास्ट ट्रैक अदालते बैठा सकती है. वो कर भी रही है. मगर हम क्या कर रहे है, हम करोड़ो कमाने के चक्कर में कौन बनेगा करोड़पति में sms भेज कर करोड़पति बनने का प्रयास कर रहे है, मगर इन्ही चेनलो पर दिखाई जाने वाली इस सलाह पर कि " अगर आपको इस चैनल पर दिखाए जाने वाले किसी विषय वस्तु पर कोई आपत्ति हो तो लिखे" का भी उपयोग करें, तो शायद करोड़ो लोगो के भविष्य को "यौन प्रदुषण मुक्त" करने का प्रयास तो कर सकते है. सोचिये अगर हमारे वोटो से सरकार बदल सकती है तो ऐसे प्रसारण क्यों नहीं बदल सकते।
जब प्रचार साधन उपलब्ध नहीं थे उस समय के लोगो ने यौनाकर्षण के दुष्परिणामों को समझते हुए इस पर चिंता जताई थी फिर भी यौन अपराध होते थे, आज तो आकर्षित करने के लिए हर हाथ में अख़बार, हर कमरे में टेलीविज़न, हर एरिया में सिनेमाहॉल, हर जेब में इंटरनेट युक्त मोबाइल उपलब्ध है, सहज ही कल्पना कर सकते यौन अपराध घटेंगे या बढ़ेगे। इसे रोकने का तथा स्वयं रुकने का सामर्थ्य विकसित नहीं करेंगे तो जैसे पिछली पीढ़ियों यह कहती हुई गुजर गयी कि हमारी तो कट गयी आगे बड़ा ख़राब समय है, सम्हल जाओ, वैसे ही आने वाली पीढ़िया चेतावनी देती हुई गुजर जाएगी। सरकार कानून बना कर ऐसे प्रसारण को रुकवा सकती है. नहीं तो अभी तो समाचारो में यौन अपराध का जिक्र होता है, हो सकता है भविष्य में बिज़नेस चैनल की तरह यौन अपराध के समाचारों का भी अलग से चैनल ही उपलब्ध हो जाये। जो तस्वीरें पहले कभी व्यस्क प्रमाणपत्र प्राप्त फिल्मो में भी नहीं दिखती थी वो तो वर्तमान में हर घर में उपलब्ध टीवी, अखबारों में वैसी तस्वीरें सहज सुलभ है.
जहाँ नारी देह का प्रदर्शन होता है तो वहां एक कलाकार का नहीं सम्पूर्ण नारी जाति के देह का प्रदर्शन होता है. नारी पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाये तो विकास होने की बात मान्य है, मगर देह से देह मिलाये तो विनाश होगा या विकाश ? हमारी महिलाओ को उपभोग की वस्तु बनने से रोके, तथा सफाई अभियान में कूड़े के साथ इस संस्कृति को दूषित करने वाले कचरे को भी शामिल करें।
जरा सोचिये !
विजय गुप्ता निगानिया