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जी हाँ सच में

5 मई 2015

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जी हाँ सच में मैं कुली हूँ उठता हूँ बोझ औकात से ज्यादा थरथराने लगते हैं पैर चरमराने लगते हैं कंधे फूलने लगाती है साँस बैठने लगता है गात पर अगले पल ही जब खिंचता है चित्र मानस पटल पर खांसती हुई माँ का दूध के लिए बिलबिलाते बच्चे का करम कूटती लुगाई का किताबों के लिए रोते भाई का आ जाती है शक्ति जाने कहाँ से भागने लगता हूँ एक प्लेटफार्म से दूसरे तक जैसे भागता है लोकतंत्र का घोड़ा लादकर बोझ निठल्लों का अनवरत...अनवरत.....अनवरत...!
सन्तोष सावन

सन्तोष सावन

विजय शर्मा जी भोगे हुए सत्य को शब्द दिया है मैंने बस!

5 मई 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

मजदूर के चरित्र का आपने बहुत बढ़िया चिंतन किया है

5 मई 2015

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-----रेलगाड़ियां (व्यंग्य )--------

5 मई 2015
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'राजधानी,भाग रही है तेज गति से पीछे छूट रहा है खेत, बाग, गांव, शहर 'जनता,रोक दी गयी है आउटर पर राजधानी तो राजधानी है उसके हर एक्शन को हमें सहना है बेचारी 'जनता, कल भी आउटर थी आज भी आउटर पर है और उसे कल भी आउटर पर रहना है । क्योंकि - बिखर गयी है 'श्रमशक्ति, 'शताब्दी, के लिए हर रास्ता खुला है 'जनसाध

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जी हाँ सच में

5 मई 2015
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जी हाँ सच में मैं कुली हूँ उठता हूँ बोझ औकात से ज्यादा थरथराने लगते हैं पैर चरमराने लगते हैं कंधे फूलने लगाती है साँस बैठने लगता है गात पर अगले पल ही जब खिंचता है चित्र मानस पटल पर खांसती हुई माँ का दूध के लिए बिलबिलाते बच्चे का करम कूटती लुगाई का किताबों के लिए रोते भाई का आ जात

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पहले रोटी दो

6 मई 2015
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वह, तीसरी बार गिरा लड़खड़ा कर उठने चलने के प्रयास में इकट्ठी हो गयी खासी भीड़ देख रही थी उसे आवाज गले में फंसकर रह जाती चेहरे पर कालिमा पुती थी होंठ कंपकपा रहे थे "पी, के पड़ा है लोग आपस में बतिया रहे थे किसी ने दिया सहारा तो वह फुसफुसाया रहने दो,रहने दो पहले रोटी दो !

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----------दोहा---------

9 मई 2015
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नए नए परिधान लख, मन का खोता चैन | कोई तो सीमा रहे ,जिसके आगे बैन || होठों पर मुस्कान है,मन है लालच रोग | नए नए परिधान में,वही पुराने लोग | |

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माँ

10 मई 2015
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आँचल में ममता दिल में प्रीत होठों पर मुस्कान लिए | स्नेह के बादल हैं आँखों में उर में प्रेम जहाँ लिए | अपने घर में है एक देवी चरणों में सब धाम लिए||----१ पर्वत भी नतमस्तक जिसपर ऊँचे का अभिमान लिए | बहती सरिता ह्रदय में जिसके बिना कोई गुमान लिए | अपने घर में है एक देवी चरणों में सब धाम लिए||----२ ज

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गजल

12 जुलाई 2015
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ज़मी पे पांव रखने का सलीका सीख ले पहले | उड़ाने आसमां की फिर तुझे खुद ही बुलायेंगी || किनारे का बने पत्थर किसी का गम छुपाये जो | समंदर की शिकायत फिर उसे लहरें बतायेंगी || अजी चाकू चलाने की नहीं कोई जरुरत है | नयन का तीर काफी है क़यामत टल न पायेंगी|| किसी के राह का रोड़ा कभी होना नहीं प्यारे | सदायें

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संतोष सावन की ग़ज़ल

12 जुलाई 2015
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https://www.youtube.com/watch?v=VC0_zGXdWrI&feature=player_embedded

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