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-----रेलगाड़ियां (व्यंग्य )--------

5 मई 2015

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'राजधानी,भाग रही है तेज गति से पीछे छूट रहा है खेत, बाग, गांव, शहर 'जनता,रोक दी गयी है आउटर पर राजधानी तो राजधानी है उसके हर एक्शन को हमें सहना है बेचारी 'जनता, कल भी आउटर थी आज भी आउटर पर है और उसे कल भी आउटर पर रहना है । क्योंकि - बिखर गयी है 'श्रमशक्ति, 'शताब्दी, के लिए हर रास्ता खुला है 'जनसाधारण, को न तो कल प्लेटफार्म मिला था नाही आज प्लेटफार्म मिला है । काशी विश्वनाथ, प्रयाग, चित्रकूट, सारनाथ लालकिला के सामने प्रश्न चिन्ह बड़े बड़े हैं 'वैशाली, और 'मगध, के पहिये अभी भी लूप लाइन पर खड़ी हैं ताज पर राजनीत की काली छाया है उसे सुपर एक्सप्रेस का दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है । मैं बंद फाटक के सामने खड़ा हो कर सोचत हूँ कि- आम आदमी 'सम्पूर्ण क्रांति, के लिए लड़े तो कैसे लड़े तो कैसे लड़े ओ भी तो दशकों से इसी फाटक पर खड़ा है आखिर 'सम्पर्क क्रांति, के पायदान पर चढ़े तो कैसे चढ़े राप्तीसागर, महानंदा, ब्रम्हापुत्रा, गोमती का उतर गया है पानी भ्रस्टाचार के प्रदुषण के चलते पहले जैसे नहीं रही 'गंगा-जमुना, की रवानी। पीछे छूटने लगा है विश्वास का स्टेशन वाला घाट हमें पढ़ाया जाता है और सिर्फ पढ़ाया 'जन-सेवा, का पाठ। काश कभी 'संगम, हो जाये हमारी घूँघट वाली, ओढ़नी वाली, संस्कृति का टेक्नोलाजी से ज्ञान-गंगा, निकले पूरे रंगबाजी से देखते ही देखते हमारी 'कैफियत, बदल जाये और ये अधनंगा विश्व हमें फिर से गुरुदेव कह के बुलाये | साबरमती से एक बार फिर यह आवाज आये कि- हिंदुस्तान में दोबारा कहीं भी 'सदभावना, न जलायी जाये और 'समझौता, हो तो सिर्फ प्रेम का एक 'प्रेम एक्सप्रेस, ढाका से, वाया दिल्ली लाहौर तक जाये शहीद आउट ऑफ़ कवरेज न रहे यहाँ से वहां तक हर शख्स ,एक स्वर में बन्दे मातरम् कहे ।
सन्तोष सावन

सन्तोष सावन

शुक्रिया मनोज कुमार जी,बहुत बहुत आभार विजय जी आप मेसेज तक पहुंच गए |

5 मई 2015

मनोज कुमार - मण्डल -

मनोज कुमार - मण्डल -

सुन्दरतम अभिव्यक्ति |

5 मई 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

संतोष जी आपने अपनी व्यंग्य रचना में बहुत बड़ा संदेश दिया है भारतीय जनता को

5 मई 2015

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-----रेलगाड़ियां (व्यंग्य )--------

5 मई 2015
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'राजधानी,भाग रही है तेज गति से पीछे छूट रहा है खेत, बाग, गांव, शहर 'जनता,रोक दी गयी है आउटर पर राजधानी तो राजधानी है उसके हर एक्शन को हमें सहना है बेचारी 'जनता, कल भी आउटर थी आज भी आउटर पर है और उसे कल भी आउटर पर रहना है । क्योंकि - बिखर गयी है 'श्रमशक्ति, 'शताब्दी, के लिए हर रास्ता खुला है 'जनसाध

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जी हाँ सच में

5 मई 2015
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जी हाँ सच में मैं कुली हूँ उठता हूँ बोझ औकात से ज्यादा थरथराने लगते हैं पैर चरमराने लगते हैं कंधे फूलने लगाती है साँस बैठने लगता है गात पर अगले पल ही जब खिंचता है चित्र मानस पटल पर खांसती हुई माँ का दूध के लिए बिलबिलाते बच्चे का करम कूटती लुगाई का किताबों के लिए रोते भाई का आ जात

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पहले रोटी दो

6 मई 2015
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वह, तीसरी बार गिरा लड़खड़ा कर उठने चलने के प्रयास में इकट्ठी हो गयी खासी भीड़ देख रही थी उसे आवाज गले में फंसकर रह जाती चेहरे पर कालिमा पुती थी होंठ कंपकपा रहे थे "पी, के पड़ा है लोग आपस में बतिया रहे थे किसी ने दिया सहारा तो वह फुसफुसाया रहने दो,रहने दो पहले रोटी दो !

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----------दोहा---------

9 मई 2015
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नए नए परिधान लख, मन का खोता चैन | कोई तो सीमा रहे ,जिसके आगे बैन || होठों पर मुस्कान है,मन है लालच रोग | नए नए परिधान में,वही पुराने लोग | |

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माँ

10 मई 2015
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आँचल में ममता दिल में प्रीत होठों पर मुस्कान लिए | स्नेह के बादल हैं आँखों में उर में प्रेम जहाँ लिए | अपने घर में है एक देवी चरणों में सब धाम लिए||----१ पर्वत भी नतमस्तक जिसपर ऊँचे का अभिमान लिए | बहती सरिता ह्रदय में जिसके बिना कोई गुमान लिए | अपने घर में है एक देवी चरणों में सब धाम लिए||----२ ज

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गजल

12 जुलाई 2015
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ज़मी पे पांव रखने का सलीका सीख ले पहले | उड़ाने आसमां की फिर तुझे खुद ही बुलायेंगी || किनारे का बने पत्थर किसी का गम छुपाये जो | समंदर की शिकायत फिर उसे लहरें बतायेंगी || अजी चाकू चलाने की नहीं कोई जरुरत है | नयन का तीर काफी है क़यामत टल न पायेंगी|| किसी के राह का रोड़ा कभी होना नहीं प्यारे | सदायें

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संतोष सावन की ग़ज़ल

12 जुलाई 2015
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https://www.youtube.com/watch?v=VC0_zGXdWrI&feature=player_embedded

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