ऐ हरियाली तुझे क्या हुआ क्यों तू उदास है ?
क्या तेरा सौभाग्य तेरे पास है ?
कभी तू हंसती थी कभी तू मुस्कराती थी
कभी तू हवा के झरोखों से हिल डुल के इतराती थी
क्या मै कहूं तू मुरझाई है ? की मै कहूँ तू धिक्काई है ,
देख न तू मुरझाना नहीं , नहीं तो सारा जगत मुरझा जायेगा ,
देख न तू झुक जाना नहीं , नहीं तो प्रकृति का मन व्यथित हो जायेगा ,
क्या सूरज ने तुझे सताया है ? की पानी ने तुझे रुलाया है ,
मस्त मगन होके तू जब भी , बागों में लहलहाती थी देख के तेरा चंचल यौवन बरखा भी शर्माती थी,
सावन झूम जाता था ,मनमोहक हवाएं आती थी पक्षी गीत सुनाते थे ,
कोयल कूक उठाती थी ,
ऐ हरियाली क्यों तू उदास है ?