हज़ारों की भीड़ में एक दीवाना वो भी था....
उसके नफरत से वाकिफ एक अनजान वो भी था...
सच्चाई से परे अपनी ही दुनिया में...
अनकही लफ़्ज़ों का एक फ़साना वो भी था...
तो सुनते है आपको उस अधूरे प्यार की बात...
रोज़ तनहा इयों में कट रही थी उसकी अकेली रात...
बताने से कतराता था...छुपाने से डर जाता था...
हक़ीक़त के राह पे हो रही थी बरसात..
उसकी बारात की शेहनाई में शहीद हो गया था वो...
मोहब्बत में उसके इश्क़ का मरीज़ हो गया था वो....
खुश था उसकी ख़ुशी में...
पर उसकी बारात के शोर में कही टूट गया था वो..
इश्क़ के सफर में एक कहानी ऐसी भी थी...
बेगानो के दौड़ में एक ज़ुबानी ऐसी भी थी...