हिमांशु मित्रा
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bebasawaj
बेबस है एक आवाज़ लोगो के जर्जर तहखाने मे व्याकुल हो उठती है जब कभी कोई शोर सुनाई देता है डरी हुई थोड़ी सहमी सी इन महानगरों के दोहरे आचरण से जहाँ असत्य का आधिक्य है जहाँ सत्य का मुद्रा से विनिमय
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<p>बेबस है एक आवाज़ </p><p>लोगो के जर्जर तहखाने मे </p><p>व्याकुल हो उठती है </p><p>जब कभी कोई शोर सुनाई देता है </p><p>डरी हुई थोड़ी सहमी सी </p><p>इन महानगरों के दोहरे आचरण से </p><p>जहाँ असत्य का आधिक्य है </p><p>जहाँ सत्य का मुद्रा से विनिमय </p>