मनुष्य और पत्थर
देखा है उनको निर्जीव हाथी को पूजते हुये।देखा था कल हाथी को महावत से जूझते हुये।। देखा उन्हें है जिंदा सांप को लाठी से मरते हुये । देखा है पत्थर के सांप की आरती उतरते हुये।।पत्थर की औरत की वो आराधना करते है।किन्तु घर की औरत पर वो प्रताड़ना करते है।। आज भी