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सिंदूर का यूँ ही लाल नहीं होता (कविता)

19 मई 2022

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🌹सिंदूर का यूँ ही लाल नहीं होता🌹article-image

औरत के सिंदूर का रंग यूँ ही लाल नहीं होता,
मांग में जो कयी अरमानों कत्ल दबे होते है ।
सपने दबे होते है खुशियाँ दबी होती है,
फरियाद करें किससे ये पुरूषों की गली में रहती है ।
नारी किसी सपने की मोहताज नहीं होती है,
इनका अस्तित्व कब बदले इनको आस होती,
एक ही जीवन में हजारों रिश्तों को निभा जाती है ।
न जाने कितने किरदारों में नारी नजर आती है ।
पण्डित से करे शादी तो पण्डिताइन कहलाती है ।
डाक्टर से करे शादी तो डाॅक्टराइन कहलाती है ।
मास्टर से करे शादी तो मास्टराइन कहलाती है ।
सेठ से करे शादी तो सेठानी कहलाती है ।
नौकर से करे शादी तो नौकरानी कहलाती है ।
ठाकुर से करे शादी तो ठकुराइन कहलाती है ।
हीरो से करे शादी तो हीरोइन कहलाती है ।
कौन कब किरदार मिले ये खुद को न समझ पाती है ।
भूल जाती है खुद की कीमत ये पुरूषों की गली में रहती है ।
औरत के सिंदूर का रंग यूँ ही लाल नहीं होता,
मांग में जो कयी अरमानों कत्ल दबे होते है ।

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Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना कृपया मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10080388

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