किसी से उनकी मंजिल का पता,
पाया नहीं जाता,
जहाँ है वो फरिश्तों का वहाँ,
साया नही जाता।।
मोहब्बत के लिये कुछ खास दील,
मखसुस होते है,
ये वो नगमा है जो हर एक साज पे,
गाया नही जाता,
किसीं से उनकी मंजिल का पता,
पाया नही जाता।।
फ़कीरी में भी मुझको माँगने में,
शर्म आती है,
तेरा हो के किसी से हाथ,
फैलाया नही जाता,
किसीं से उनकी मंजिल का पता,
पाया नही जाता।।
चमन तुमसे ही रोशन है,
बहारे तुमसे है जिंदा,
तुम्हारे सामने फूलों से,
मुरझाया नही जाता,
किसीं से उनकी मंजिल का पता,
पाया नही जाता।।
मोहब्बत की नहीं जाती,
मोहब्बत हो ही जाती है,
ये शोला खुद भडकता है,
इसे भड़काया नही जाता,
किसीं से उनकी मंजिल का पता,
पाया नही जाता।।
मेरे टूटे हुये पेरौ तलब का,
मुझपे एहसान है,
तेरे दर से उठ के अब कही,
जाया नही जाता,
किसीं से उनकी मंजिल का पता,
पाया नही जाता।।
किसी से उनकी मंजिल का पता,
पाया नहीं जाता,
जहाँ है वो फरिश्तों का वहाँ,
साया नही जाता।।