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ये कहानी उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के छोटे से गांव ज्योलिकोट की है । आप में से कम ही लोगों ने इसके बारे में सुना होगा,पर अगर आप ज्योलिकोट में सप्ताहांत में देखने की जगहें ढूंढे तो एक लंबी सी लिस्ट स
आज जो पार्सल आया था उसमें एक पुरानी कुंजी की सूची और अनुवादित का उपयोग करने के लिए निर्देश शामिल थे, मैं उन निर्देशों को बड़े ध्यान से पढ़ रहा था, आखिर मेरा एकमात्र सपना "लीजेंड ऑफ द डार्क वर्ल्ड" विड
भईया काले रंग की तो बात ही कुछ अलग है, ये बात अलग है कि इस रंग को लेकर बड़े बुजुर्गों ने जो फरमाया है उसे सुन कर बाकी रंगों के लोगों के कान खड़े हो जाते हैं, जैसे उनका कहना है कि इस रंग के पुरुष और मह
न इस्तेमाल करें पति की धोती का कपड़ा,केवल इस्तेमाल करें स्वच्छ पैड फ्रॉम छपरा,हो न जाए कहीं महिलाओं वाली बीमारी,पैडमैन को चिन्ता लगी रहती है तुम्हारी...शादीशुदा हो या हो कोई कन्या कुँवारी,चाहे पहने चू
आज भोरे जईसन खोली खिड़की देखा कलुआ की होत रही पिटाई,मारत रही पुलिस वाली अम्मा नीचे लेटा रहा कलुआ बनकर चटाई। बोलत रहा कलुआ "अम्मा अब न निकली बाहर कसम महरारू की," अम्मा न मानी बोली "हराम खोर त
भारत में फ़ुटबॉल की उत्पत्ति का पता उन्नीसवीं सदी के मध्य में लगाया जा सकता है जब इस खेल की शुरुआत ब्रिटिश सैनिकों द्वारा की गई थी। प्रारंभ में, खेल सेना की टीमों के बीच खेले जाते थे। हालाँकि, जल्द ही
सर्द रात का कहर,यूं थमता हर पहर,कर रहे मिलकर ये इशारा,दहशत पूछ रही पता हमारा...सन्नाटे का बढ़ता शोर,फ़ैल गया है चारों ओर,बनकर वक़्त भी काला चोर,अंधेरे में घूम रहा हर ओर...आजमाइश की ये तपती रेत,बनाकर ह