ग़ज़ल
हम करें भली बातें
चार अनुभवी बातें
जब मिला करें हम तुम
रोज हो नयी बातें
मोहती रहीं मुझको
शोख जादुई बातें
हाँ लगी बहुत प्यारी
आपकी गुनी बातें
सींचती रही मन को
दूध-सी धुली बातें
सिर्फ ये सुखद लगती
बात की धनी बातें
झूठ से भरी कर मत
अब बड़ी-बड़ी बातें
नित उड़ी हवा में हैं
ख्वाब देखती बातें
मौन मन रहा साधे
सोच में जगी बातें
धार-सी बही हैं जब
बन गयी नदी बातें
था खफा मगर देखो ।
बात से बनी बातें ।।
भा गई मिरे मन को ।
देर तक चली बातें ।।
तुम न वक्त दे पाए ।
मन में रह गयी बातें ।।
डा. सुनीता सिंह 'सुधा'
वाराणसी ,©®
31/7/2022