एक बार फिर से तेज उड़ान भरनी है
उन समंदर पर अपनी सांसे ना थमनी है
उजली रातो को आसमान का क्या खूब नजारा है
सुबह हुई तो जान गया की दूर अभी किनारा है
गर्मी होती सर्दी होती और कभी हो जाती बरसात
लहरों को ये काट निकलता और मचाता है उत्पात
एक बार फिर से तेज उड़ान भरनी है
उन समंदर पर अपनी सांसे ना थमनी है
रुक जाना नाही अपनी मंजिल और ना ही आदत है
आगे बढ़कर चलते जाना अपने पास भी यारो हिम्मत है
चाल भी अपनी है मतवाली कभी इधर चले कभी उधर चले
मछलियों से दौड़ लगाता और मिलता हूं तूफानों के गले
एक बार फिर से तेज उड़ान भरनी है
उन समंदर पर अपनी सांसे ना थमनी
बीता वक्त यू ही मन में चंद मुस्कान सिए हुए
आहे भरता शोर मचाता चल दिया किनारे के लिए
शाम हुई जब हुआ अंधेरा जलाए रोशनी के दीए
फिर से मैं निकाल पड़ा बिना अपनी परवाह किए
आहिस्ता आहिस्ता ये कहते हुए
एक बार फिर से तेज उड़ान भरनी है
उन समंदर पर अपनी सांसे ना थमनी