हम है जहाजी जहाज पे
कट रही है जिन्दगी ऐसे तैसे,
जी रहे वनवास में जैसे ,
घर जाना है साहब
नहीं चाहिए इतने पैसे।
हम हैं जहाजी जहाज पे
परिवार है चितिंत गांव में,
लग गई है बेडिया पांव में
जिंदगी ठहर सी गई नाव में,
इस बंद कमरे कि छाव में,
हम है जहाजी जहाज पे
सब विभागों की हो गई छुट्टी,
सरकार पिलाती है हमें घुट्टी
खाना पानी सब एक हुआ
घर जाने की करते है दुआ
Signoff का कुछ पता नही,
ड्यूटी जाने कि कोई खता नहीं,
Airports बन्द हो जाते हैं,
जब हम port किनारे आते हैं।
माँ-बाप सिसककर पूछ रहे,बेटा तुम कैसे रहते हो,
बचपन का वो पाठ याद करता जिसे आप साहसी कहते हो
हम तो जहाजी जहाज़ पे
जहाज के लिये समर्पित जीवन अपना,
उस पार निकलने का है सपना
जाने कि ख्वाहिश लेकर पल पल युं ही बिताते है
हम तो जहाजी जहाज़ पे
साहब, इसलिए ही तो हम फर्ज निभाते है|