चार दिवारी में बैठ यु ही सोचते रहे
उम्र की कलम से ज़िन्दगी के पन्ने भरते रहे
जब पलट कर देखा तुझे ऐ- ज़िंदगी
कुछ किस्से आंखो में ढेर सी खुशियां लाए
और कुछ लम्हे आंखो को नम कर बोले बाय
चार दिवारी में बैठ यु ही सोचते रहे
उम्र की कलम से ज़िन्दगी के पन्ने भरते रहे
ज़िन्दगी के जीना का सरीखा कुछ यू रहे
साथ रहे लेकिन खुद में ही चूर ना रहे
प्यार , अमन , खुशियां ये सब तो काफिर है
बेवजह ज़िद करने की जरूरत क्यों रहे
तुम पूछो और मैं ना बताऊं , ऐसे हालात ना रहे
और कभी मन में जज्बात हो जग रहे तो
वक़्त पर छोड़ देना चाहिए कुछ उलझनों के हल
बेशक जवाब लाजवाब मिलेगा जब आएगा पल