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*ज़िंदगी इसी का नाम है*

21 फरवरी 2022

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अंधेरों से लड़ कर जीना सीखा,
ठोकर खा कर संभलना सीखा।
ज़िंदगी के हर मोड़ पर दी हैं बहुत सी परीक्षाएं,
काम आईं हैं हमेशा मां - पापा की दी हुई शिक्षाएं ।
बाहर से तो ज़िंदगी देखने में बड़ी सीधी - सादी सी है,
पर मन के अन्दर भूकम्प सी उथल – पुथल है।
विचारों का सैलाब उमड़ता है, क्या सही क्या गलत कहां कोई समझता है ।
हालात ज़िंदगी में बहुत कुछ सिखा जाते हैं,
समय के साथ अपने पराए का अंतर बता जाते हैं ।
मैंने मुश्किलों से अकेले ही लड़ना सीखा,
अंधेरों को उजालों में बदलना सीखा ।
है आदि शक्ति मां की कृपा मुझ पर ,
तभी तो मैने बार - बार गिर कर संभलना सीखा ।।
रचनाकार 
सुरभि श्रीवास्तव
फतेहपुर
उत्तर प्रदेश

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