पाठकजनों ने अभी तक भाग-02 पढ़ा, अब भाग- 03 पढ़िए:- संतान होना या ना होना यह आपके पूर्व के कर्मों का फल है। यदि संतान को धर्म-कर्म का ज्ञान नहीं है तो वह चाहे कितनी ही नेक है, कभी न कभी गलती कर ही देगी। वह सब पाप कर्मों के कारण होगा। एक व्यक्ति ने बताया कि मेरा ससुर चार एकड़ का जाट किसान था। उसने दिन-रात मेहनत करके कुल सोलह एकड़ जमीन खरीदकर बना ली यानि बारह एकड़ जमीन और मोल ले ली। चार लड़के थे और एक लड़की थी। सबकी शादी कर दी। साठ वर्ष की आयु में मेरे ससुर जी को अधरंग मार गया। चारों लड़के भिन्न रहते थे।
कुछ दिन बड़े बेटे में रहा, परंतु 6 महीने में ही कपड़ों में बदबू आने लगी। फिर तीसरे नम्बर वाले के घर में रहा, कुछ दिन बाद उसने भी हाथ खड़े कर दिए। इस प्रकार चारों पुत्र सेवा से तंग आ गए। गाँव की पंचायत ने मेरे ससुर जी की सेवा कराने के उद्देश्य से दो एकड़ जमीन उसको अधिक देने का फैसला किया जो बेटा अपने पिता की सेवा करेगा। इस लालच में छोटे वाले ने सेवा करने की बात मान ली। 6 महीने में उसने कहा कि मेरे बस की बात नहीं है। रिश्तेदार इकट्ठे हुए। सब बच्चों को सभी प्रकार से समझाया, परंतु कोई सेवा को तैयार नहीं हुआ। वह भक्त बता रहा था कि मेरा ससुर बोल भी नहीं पा रहा था। जब छोटा पोता सामने आया तो गर्दन के संकेत से कह रहा था कि आजा मेरे पास, लाड करूंगा। यह भूल पड़ी है। बेटों ने तो कर दी मौज, पोतों की कसर बाकी है। उन दो एकड़ को ठेके पर देकर उसके लिए एक नौकर रखा, दुर्गति से मरा।
विचार करें कि ऐसे कमेरे (मेहनती) व्यक्ति को यह भी ज्ञान होता कि भक्ति तथा धर्म के बिना मानव जीवन नरक बन जाता है तो वह उसके साथ-साथ परमात्मा की भक्ति भी करता तथा ऐसी दशा को प्राप्त नहीं होता। बच्चे भी सेवा करते। सत्संग में यही शिक्षा दी जाती है। श्रद्धालुओं को दया-धर्म का पाठ पढ़ाया जाता है। आश्रम में सत्संग के दौरान वृद्ध, रोगी, अपंग, छोटे बच्चों सहित माताऐं, बहनें, बेटियां आते हैं। आश्रम में पुराने भक्तों तथा भक्तमतियों की ड्यूटी लगाई जाती है। वे आने वाले वृद्धों, रोगियों तथा अन्य असहायों की सेवा करते हैं। उनको स्नान कराते हैं। उनके वस्त्र धोते हैं। भोजनालय से भोजन-प्रसाद लाकर पण्डाल में बैठों को खिलाते हैं। चाय-दूध भी वहीं बैठों को लाकर देते हैं। विचार करें कि जो बच्चे (सत्संग में जाने वाले) तथा बेटी, बहनें, माई व भक्त-भाई सत्संग में आने वाले गैरों की सेवा करते हैं तो वे घर पर अपने माता-पिता, भाई-बहन, सास-ससुर की भी उसी भाव से सेवा करेंगे क्योंकि उनका स्वभाव बन जाता है। उनके दिलों में दया भरी रहती है। उनको परमात्मा का विधान अच्छी तरह याद होता है। जैसा कि पूर्व में प्रसंग है कि एक कमेरे (मेहनती) किसान को अधरंग मारना और बच्चों द्वारा अनदेखा करना। यदि वे लड़के तथा बहुवे सत्संग में जाते तो वे अपने पिता की बहुत सेवा करते। यदि वह किसान परमात्मा की भक्ति करता तो उसका शरीर स्वस्थ रहता और उसकी भक्ति के कारण भजन के तेज से प्रभावित होकर परिवार अपने-आप आदर करता है। उदाहरण के लिए साधु-संत भक्ति ही करते हैं, जिस कारण गाँव का गाँव उनका सेवा-सत्कार करता है। इसी प्रकार भक्ति करने से परमात्मा की शक्ति अपने आप अन्य को प्रेरित करके भक्त के अनुकूल परिस्थिति बना देती है। इसीलिए भक्ति करने की प्रेरणा संत जन देते हैं। सत्संग से जीने की राह अच्छी बनती है।
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