जीवन जीना आता ही नहीं
हम को जीना आता ही नहीं; हम को जीना आता ही नहीं ;
हम को जीना आता ही नहीं।
कहीं पहुंच जाने के चक्कर में रहते हैं;
जीवन यात्रा का आनंद जाना ही नहीं।
और, और, और अधिक चाहते रहते हैं;
नया पकड़ने केलिए, मुट्ठी ढ़ीली करना आता ही नहीं।
दूसरों को जिम्मेदार ठहरता रहता है;
बदलना तो स्वयं को है, पर स्वयं को जिम्मेदार मानता ही नहीं।
सब कुछ भाग्य के मत्थे मड़ता है, स्वयं का पल्ला झाड़ता रहता है;
मैं ही मेरा भाग्य निर्माता, इस द्रष्टि से देखना होता ही नहीं।
हर चीज की कीमत जान गए, पर मूल्य को देखना भूल गए;
छोटी छोटी चीजों में, खुश होना होता ही नहीं।
हमने जीवन जाना ही नहीं;
हम को जीना आता ही नहीं।
उदय पूना