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LahalKavita

उदय पूना

2 अध्याय
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लहल - कविता में लहर ही लहर; कविता में हर 2 या 3 पंक्ति में एक बिंदु, लगातार बिंदु के बाद बिंदु, गज़ल नुमा;  

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पुस्तक के भाग

1

जीवन जीना आता ही नहीं

24 नवम्बर 2018
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जीवन जीना आता ही नहींहम को जीना आता ही नहीं; हम को जीना आता ही नहीं ;हम को जीना आता ही नहीं।कहीं पहुंच जाने के चक्कर में रहते हैं;जीवन यात्रा का आनंद जाना ही नहीं।और, और, और अधिक चाहते रहते हैं;नया पकड़ने केलिए, मुट्ठी ढ़ीली करना आता ही नहीं।दूसरों को जिम्मेदार ठहरता रहता है;बदलना तो स्वयं को है, पर स

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क्या चाहिए जीवन केलिए

24 नवम्बर 2018
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क्या चाहिए जीवन केलिए जीवन सुन्दर है, जीवन आंनद है, प्रत्येक व्यक्ति केलिए;पर हम, स्वयं की कैद में रहते हैं, घुट घुटकर मरने केलिए। जो कमाई करते रहते हैं, केवल पेट पालने केलिए;वो भर पेट भोजन क्यों त्यागते, केवल कमाई करने केलिए। न जाने क्या क्या जुटाते रहते हैं, बाद में

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