ये कहानी उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के छोटे से गांव ज्योलिकोट की है । आप में से कम ही लोगों ने इसके बारे में सुना होगा,पर अगर आप ज्योलिकोट में सप्ताहांत में देखने की जगहें ढूंढे तो एक लंबी सी लिस्ट सामने आ जाएगी। इसमें फूलों की खेती और तितलियाँ पकड़ना सीखना जैसी अद्भुत गतिविधियाँ शामिल हैं।आम सैलानी इसे हल्के में ले सकते हैं पर मेरी तरह आप भी अगर नई चीज़े आज़माना पसंद करते हैं तो यहाँ ज़रूर आएँ।
समुद्रतल से 1219 मीटर की ऊँचाई में बसे इस गाँव में सैलानी पूरे साल ही आ सकते हैं। अक्सर नैनीताल, नौकुचियताल और भीमताल जैसे कस्बों में छुट्टियाँ मनाने वाले लोग ज्योलिकोट के रास्ते से ही जाते हैं। मगर इन सब सर्द जगहों की तुलना में ज्योलिकोट में तापमान ज्यादा ही रहता है। सर्दियों में भी यहाँ भीनी भीनी धुप हमेशा ही रहती है, इसलिए आप यहाँ छुट्टियाँ मानाने पूरे साल आ सकते हैं। मगर ज्योलिकोट आज भी जाना जाता है ब्रिटिश काल के अपने इतिहास के लिए। सबसे पहले यहाँ उन अंग्रेजी हुक्मरानों ने घर बसाये जिनको नैनीताल की ठंड से राहत चाहिए थी। इस कारण ये ठहरने का एक पसंदीदा पड़ाव बन गया। आज की तारीख में वो सभी घर होटल बन चुके हैं जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
हमारी कहानी भी अंग्रेजी शासन के समय के ज्योलिकोट की है जब सड़कों का इतना निर्माण नहीं हुआ था और गाँव वालों को कच्ची सड़कों या जंगल का रास्ता ही चुनना पड़ता था एक जगह से दूसरी ओर जाने के लिए।
ज्योलिकोट एक खुशहाल गाँव था। वहाँ के लोग काफी मिलनसार किस्म के थे और अक्सर अपने महमानो का स्वागत करने के लिए तैयार खड़े रहते थे।
गाँव में एक अखाड़ा हुआ करता था जिसके पहलवान अगल बगल के गाँवों में काफ़ी प्रसिद्ध थे और अक्सर सालाना दंगल में प्रथम स्थान पर आया करते थे। उनकी बहादुरी का डंका चारों ओर बजने लगा जिससे अखाड़े को चलाने वाले पहलवान बलबीर का सिर गर्व से ऊंचा रहता था, घमण्ड ने उसकी मूँछों को ताव दे रखा था, आखिर पट्ठे थे तो उसी के अखाड़े के।
सब कुछ अच्छे से चल रहा था कि अचानक एक दिन ज्योलिकोट में एक अफवाह ने सबको हैरत में डाल दिया। कुछ लोगों का कहना था कि शहर की ओर जाने पर जो काली पहाड़ी पड़ती है उसमें एक चुड़ैल ने डेरा जमा लिया है और आने जाने वाले हर राहगीरों को मौत के घाट उतार देती है। पहले तो सबने सोचा कि किसी जानवर का काम भी हो सकता है लेकिन जब गाँव में स्थापित अंग्रेज़ी चौकी इंचार्ज की जान चली गई तो लोगों ने सोचा कि हो न हो ये चुड़ैल का ही काम है तभी तो अंग्रेजी चौकी इंचार्ज गोली नहीं चला पाया। उसके पास तो बंदूक भी थी अगर कोई जानवर होता तो कब का ढेर कर चुका होता अंग्रेज़ी अफसर लेकिन वो तो चुड़ैल निकली अंग्रेज़ी अफसर का ही काम तमाम कर दिया।
धीरे धीरे काली पहाड़ी की चुड़ैल का किस्सा बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर था। अगल बगल के गाँव वालों ने काली पहाड़ी की तरफ़ देखना तो दूर नाम तक सुनना छोड़ दिया।
ज्योलिकोट के गाँव के सरपंच तक ये बात पहुँची उसने सोचा कि ये कोई अच्छी बात नहीं है ऐसे तो गाँव के कई लोगों को नुकसान हो जाएगा क्यूँकि शहर जाने के रास्ते में ही काली पहाड़ी पड़ती है और व्यवसाय की दृष्टि से देखा जाए तो हमारे गाँव को नुकसान हो रहा है। तो सरपंच ने गाँव में एलान करवा दिया कि जो हिम्मत वाला पुरुष काली पहाड़ी पर रात में उस तथाकथित पुराने पीपल के पेड़ के नीचे एक लोहे का खूंटा गाड़ देगा उसे गाँव और अंग्रेजी हुकूमत की तरफ से इनाम दिया जाएगा।
सभी लोगों तक सूचना पहुंच गई लेकिन सभी को चुड़ैल के हांथों जान गवाने का शौक थोड़े ही था। गाँव भर ने इस बात पर चुप्पी लगा ली।
जब बलबीर को इस बात का पता चला तो उसने सोचा कि ये अच्छा मौका है गाँव वालों की नज़रों में मर्द बनने का, अब तक तो गाँव के लोग सिर्फ उसके अखाड़े के पहलवानों की ही तारीफ़ किया करते थे लेकिन अगर उसने ये खूंटा गाड़ दिया तो इसके बाद सारे गाँव में सिर्फ उसी की बहादुरी का डंका बजेगा। तो उसने गाँव के सरपंच की चुनौती को स्वीकार कर लिया और खूंटा तथा हथोड़ा लेने उसके घर पहुंचा। सरपंच ने उसकी तारीफ करते हुए दोनों चीज़ें उसे पकड़ा दीं। बलबीर को आधी रात को पेड़ के नीचे जाकर खूंटा गाड़ना था इसलिए दिन भर बड़ी बेताबी से रात होने का इंतजार करने लगा।
रात होते ही बलबीर काली पहाड़ी की ओर चल दिया। रास्ते भर जानवरों की आवाज़ों और पत्तों की सरसराहट ने उसे अंदर से थोड़ा दहला दिया था। कुछ ही पलों में बलबीर काली पहाड़ी पर पहुँचा। उसने पहले ध्यान से पहाड़ी के इर्दगिर्द देखा, वहाँ कोई भी न था। बलबीर को रात का अंधेरा और पहाड़ी के जानवरों की भयानक रोने की आवाज़ ने डरने पर मजबूर कर दिया था। उसने हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ना शुरू कर दिया और काली पहाड़ी पर चढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद वह उस पीपल के पेड़ के नीचे पहुंच गया, उसने सोचा जल्दी से खूंटा गाड़ कर सीधा अपने गाँव की ओर भागता हूँ। उसने खूंटा गाड़ दिया और पलट कर हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए भागने लगा कि अचानक उसे एहसास हुआ कि उसकी धोती किसी ने पकड़ रखी है। उसे फौरन ख़याल आया कि हो न हो ये चुड़ैल ही है।
सुबह हो गई थी गाँव के सरपंच ने पहले बलबीर के घर में उसका पता किया तो पता चला कि रात को लौटे ही नहीं हैं पहलवान। तो उसने कुछ नौजवानो को इकट्ठा किया और काली पहाड़ी की तरफ़ चल पड़ा। पहाड़ी पर उसी पुराने पीपल के पेड़ के पास जाकर देखा तो बलबीर गिरा पड़ा था और उसकी धोती उसी खूंटे में फंसी पड़ी थी जिसे पेड़ के नीचे गाड़ने को कहा था।
बलबीर को रात में ही दिल का दौरा पड़ गया था जिससे उसकी मौत हो गई। सरपंच सारी बातें समझ गया और बलबीर की मौत ने ये साबित कर दिया कि चुड़ैल जैसी कोई चीज़ नहीं थी, सब वहम था क्यूँकि बलबीर ख़ुद की ही धोती से फँस कर दिल के दौरे से मरा था, उन राहगीरों और उस अंग्रेजी अफसर को डाकुओं ने मारा होगा।
धीरे धीरे ये बात सारे गाँव में फैल गई और सबके मन से काली पहाड़ी की चुड़ैल का डर ख़त्म हो गया।
©IvanMaximus