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कबीरा...

15 जून 2022

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एक कबीरा...  

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....

बड़ा ही शांत सा समुद्र था वो

अपने अंदर कई तुफान लेकर

अक्सर मुस्कुराया ही किया करता था 

लहराता रहता उन हवाओं से मिलकर 

खाली झोली लिए फिरता

फिर भी खुशियों से सबको जित ही लेता

मिल जाया करता था बारिश में कभी नाचते मोर के संग

सर्द पहाडों की बर्फीली हवाओं से बनी कोई धूँध

या फिर

सैकड़ो सिपों में एक अनमोल मोती जैसे मिल ही जाता..

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....

अक्सर उसे पाया हैं चाँद से बातें करते हुए

ना जाने क्यू वो तनहा चाँद को इतना निहारते रहता

कभी अटखेलियाँ सुनाता

तो कभी अपने सारे दर्द उस चाँद को ही दे आता

चाँद हो ना मानो हो उसका कोई पुराना सा नाता

पुछो तो कहता

अरे .. चाँद से तो अपना गहरा याराना हैं..

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....

कुछ पल तो लगा मुझे उसे सही समझने में

शायद ज्यादा ही पल ले लिया मैंने

उसकी रूसवाई भी की मैंने

ठेस लगाकर दिल को भी था छोड़ा

अंजान थी उसके तुटे दिल के हाल से 

अनजाने में ही  मैंने उसे और क्या - क्या न कहकर तोडा

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....
 

मुहब्बत को करना और समझना

इतना आसान नहीं हैं

ये उससे मिलकर हैं मैंने जाना

खामोश मुहब्बत करता रहा

फिर भी एक शब्द को ना वो बोला

इब के खोने से डरता था

मुश्किल से तो था उसने कुछ पाना सीखा

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....

इब के कहीं मिल जाए तो वो

बस...अपना बनाकर ही हैं रखना

बहुत दर्द बरदाश्त कर चुका है वो

अब उसके सारे दर्दों पर बस मरहम बनकर है मुझे रहना....

मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर

एक कबीरा..

मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर.....
#ks

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