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अक्सर हम लड़कियों को पापा की परी कह कर चिढाया जाता हैं, हाँ, शायद सच भी होगा के हमेशा हम पापा की परीयाँ ही रहती हैं .. . बहुत ही लॉजिकल सी बात हैं इसके पिछे भी.. एक मर्द अपने बचपन में हर प्रका
प्रेम.. कितना सरल शब्द हैं जिसने भी ये दुनिया बनायी हैं न उसने कितने प्रेम से बनाया होगा प्रेम को.. लेकिन उसके ह्रदय से निकल कर संसार में आते आते ये जो प्रेम हैं ना सारे ब्रम्हा
एक असमंजस प्रेम.. हम अक्सर कई लोगो से बात करते हैं जिनमें से कुछ लोंगो से हमें बाते करना अच्छा लगता हैं कभी - कभी हमारे विचार कुछ लोंगो से मिलने लगते हैं तो कभी किसी की शैतानियाँ, नादानिय
एक कबीरा... मिल गया था मुझे भी भटकी इन राहों पर एक कबीरा.. मस्त कलंदर .. मन .. मस्त कलंदर..... बड़ा ही शांत सा समुद्र था वो अपने अंदर कई तुफान लेकर अक्सर मुस्कुराया ही किया करता था