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प्रेम...

23 मई 2022

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प्रेम..

कितना सरल शब्द हैं

जिसने भी ये दुनिया बनायी हैं न

उसने कितने प्रेम से बनाया होगा प्रेम को..

लेकिन उसके ह्रदय से निकल कर संसार में आते आते ये जो प्रेम हैं ना

सारे ब्रम्हांड की सैर कर गया

कुछ अच्छा और कुछ बुरा सीख गया..

जो कुछ अच्छा सीखा वो सब बस निमित्त मात्र में सीमा हद्द तक रह गया

और जो कुछ बुरा हैं न उसके हिस्से में आया

उसमें क्रोध, कपट, लालच, वासना और अंहकार..

कैसे टीक पाता अच्छा वाला प्रेम क्यूकि

उसका प्रतिद्वंधी जो बुरा प्रेम था ना

उसके अपने तो सारे थे

हारता चला गया अच्छा वाला प्रेम..

रोता चला गया, चिखता चला गया,

सिर पटक कर लहूलुहान भी हुआ

किसी ने उसकी कुछ ना सुनी,

फिर बुरा वाला प्रेम था ना बस मुस्कुरा दिया

और पलटकर चला ही जाता

लेकिन ये जो सारे अपने थे ना उन्होंने उसे ऐसे जकड़ लिया के

बेचारा कैद होकर रह गया..

झटपटाता रहा

लेकिन कुछ हासिल ना हुआ

एक उम्मीद भाव से उसने अच्छे वाले प्रेम की ओर देखा

उसे पता था वो अच्छा हैं

उसे बचा ही लेगा

लेकिन उम्मीद भी टूट गयी जब अच्छे प्रेम ने

उसे बचाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया

बुरे प्रेम के छूते ही अच्छा प्रेम भी मलिन हो गया..

ये सब वो देख रहा था जिसने दुनिया को सींचा था

करता भी क्या

हाथ बढ़ाता तो खुद भी मलिन हो जाता

खामोश रहा बस

मोक्ष ही उन दोनों का परिवर्तन था

जो आसान कहां अब.....
#ks

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