काश..!
हम चश्में उतार कर देख पाते..?
क्या कहूँ..?
आज बस इतना ही कि
आहत हूँ..!
कारण..?.
यही चश्में है
जिन्हें लगाकर
दुनिया एक रंग में रंगी दिखती है
नफरत का रंग..!
मायूसी का रंग..!
हताशा का रंग..!
भटकाव का रंग..!
अहंकार का रंग..!
ललकार का रंग..!
और भी न जाने कितने रंग..!
नहीं दीखता तो बस
सद् भाव का रंग..!
समझदारी का रंग..!
बढ़ती उम्र के साथ
मेरी भी आँखों पर
चढ़ गया है चश्मा
जिससे दिखता है
सिर्फ
बेबसी का रंग..!
काश..!
हम सब
ये चश्में उतारकर देख पाते..?