यायावर
दैनिक यादगार पल
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काश..! हम चश्में उतार कर देख पाते..? क्या कहूँ..? आज बस इतना ही कि आहत हूँ..! कारण..?. यही चश्में है जिन्हें लगाकर दुनिया एक रंग में रंगी दिखती है नफरत का रंग..! मायूसी का रंग..! हता
हम उम्र भर बदलते रहे बस सीलन भरी कोठरी इस उम्मीद में कि शायद दूसरी की छत पहले से कम टपकती हो शायद..दूसरी कोठरी में खुलती हो कोई ऐसी खिड़की जिससे नजर आता हो नीला समन्दर वो समन्दर..! जिस की
अभी जो संसद में मुँह बंद करके बैठे हैं अभी जो कान बंद किये हैं अभी जो सड़ी लाशों से नाक बंद करके बैठे हैं अगले चुनाव में ये सभी गांधी के बन्दर कहलायेंगे -विष्णुचन्द्र शर्मा