किसे में असली समझू...
तेरे उन बेबाक़ शब्दों को..
या उन चुप होंटो को,
तेरे उन शोर मचाते झगड़ो को..
या उन गुपचूप से मासूम आँसुओ को,
किसे में असली समझू ...
तेरे बार-बार नाराज होने को..
या तेरे भेजे उन रोमांटिक गानों को,
किसे में असली समझू...
तेरे बार बार रिश्तों की दुहाई देने को..
या उन रिश्तों को तोड़कर सजा पाने को,
किसे में असली समझू...
मेरे हर गुनाह में तेरे शरीक होने को..
या मुझे गुनाहगार बताकर तेरे पाक साफ होने को,
किसे में असली समझू ...
मेरा तेरी जिंदगी में न होने को ..
या न होकर भी तेरा सबकुछ होने को...