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कुछ अल्फ़ाज़

26 नवम्बर 2015

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सोचता हूँ कुछ अल्फ़ाज़ लिखूं,

अपने सपनो की की हर बात लिखूं ,

जिसे देखा था मैंने सपनो में

उस सपनो की हर वो बात लिखूं ।


दूर बादलो से मेरे ख्वाबो में आती थी ,

बहती हवाओ से मुझको आवाज़ वो लगाती थी ,

पास आकर प्यारी सी एक मुस्कान दे जाती थी ,

जाते जाते कानो में कुछ बाते बोल जाती थी ,

उस हसींन मुस्कान की हर बात लिखूं ,

सोचता हूँ कुछ अल्फ़ाज़ लिखू ।


मांगी थी दुआ उसे पाने की ,

उसे अपना बस अपना बनाने की,

उस दुआ की हर वो बात लिखूं ,

सोचता हूँ कुछ अल्फ़ाज़ लिखूं ।


नव प्रभात को देखा कोई नज़र नही आया ,

सपना था यह कहकर मै मंद मंद मुस्काया,

सोचा सबके सपने अगर इतनी रंगीन होते ,

तो समस्त मानव जीवन हसीन होता ,

उस हसीं जीवन की हर बात लिखूं,

सोचता हूँ कुछ अलफ़ाज़ लिखूं ॥

गुलशन कुमार

गुलशन कुमार

शुक्रिया ओम प्रकाश शर्मा जी

9 दिसम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

बहुत खूब, गुलशन कुमार जी !

9 दिसम्बर 2015

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