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कुण्डलिया

1 अगस्त 2016

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कहते सब  सरिता मुझे, बढती हूँ निष्काम 

जीवन के पथ हैं कठिनचलते रहना काम 

चलते रहना कामनहीं रोके रुक पाती  

शत्रु सामने देखसहज  दुर्गा बन जाती 

मेरा शील स्वभाव, भाव  हैं  मुझमें बहते   

मैं जीवन  का स्रोत, मुझे  सब  सरिता कहते ||


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