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कौवे की बारात

28 जनवरी 2015

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featured imageचल पड़ी कौवे की बारात, हो गई थी सुबह नहीं थी रात । दुल्हन बानी कोयल कौआ दूल्हा, चमगादड़ था पेड़ पर झूला । अ गई कोयल के द्वार पर बारात, होने लगी नोटों की बरसात । मन में बहुत ही खुश था कौआ, मटरी नाउन दे आई बोलौआ । खग राज गरुड़ जी आये, संग मंत्री हंशराज को लए । गौरैया मौसी बतख नानी आई, कोयल क लिए अंगूठी लायी । होने लगी द्वारचार की तयारी, कौए ने की घोड़े की सवारी । पंडित मोरदास मंडप में आये, मंडप में दूल्हा दुल्हन बुलवाये । बगुले ने की भोजन की अगुवाई, रखा बफेसिस्टम कुर्शी मेज नहीं लगवाई । आए मैना मामी मामा तोता, सारस दादी उल्लू रहा सोता । बैंड बज लेकर मुर्गा आया, बुलबुल चाची ने गाना गया । तीतर भाभी ने ठुमके लगाये, कबूतर भैया ने पैसे लुटाए । "निर्भय" हो रहे सभी बाराती, इंस्पेक्टर शुतुरमुर्ग थे घरती । मोरदास जी लगे मन्त्र पढने, यज्ञ कुण्ड के फेरे लगे पड़ने । छः फेरे हुए अभी सातवा नहीं हुआ, कौवे के सिर पे कटाने लगा जुआ । सेहरा उत्तर कौआ लगा खुजलाने, तभी कोयल ने देखे नजराने । गोरा तो है मेरे ही जैसा, पर दिखने में है कला भैसा । चल पड़ी कोयल फेक कर मंगल धागा, कौआ भी खड़ा हो उसके पीछे भगा । हुआ दुखी टूट गयी आशा की कड़ी, दूर दूर तक कोयल न दिखाई पड़ी । तब से कौआ करता है काँव काँव, काँव का मतलब कँहा हो कँहा । बिन दुल्हन के लौट गयी बारात, अब न थी सुबह न दिन हो गयी थी रात ।
अवधेश

अवधेश

बहुत ही अच्छी कविता है| आप इंजीनियर के साथ साथ कवि हो|

28 जनवरी 2015

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वृक्ष के अंत भाव

28 जनवरी 2015
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मै गुजरा एक वृक्ष के पास, दिखने में था जो बहुत निराश। मैने कहा हे तरुवर भाई, तुम में क्यों आकुलता छाई। जल बिन हुआ मैं उदास, जिससे जीवन से हूँ हतास। सूखने को हैं मेरे हाथ, पत्तों ने भी छोड़ा है साथ। तुम तो हो धरा के भूषण, करते हो दूर प्रदूषण। मैने कहा कौन है इसका उत्तरदाई, उसने कहा मानव ने की पे

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लोन दर्शन की अभिलाषा

28 जनवरी 2015
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सुबह थी रविवार की न कोई काम था न कोई झमेला ! अभिलाषा थी ‘लोन’ दर्शन की मै भी था अकेला !!१!! मै चल पड़ा उसी पथ पर, जो जाता था उसके तट पर, थी दो सौ गज की दूरी, मन में थी श्रृद्धा पूरी, रंग था उसका पूर्ण अरुण, क्योंकि सूर्य नहीं था तरुण, लगता है यहाँ पर मेला ! अभिलाषा थी ‘लोन’ दर्शन की मै भी था अकेला !

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कौवे की बारात

28 जनवरी 2015
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चल पड़ी कौवे की बारात, हो गई थी सुबह नहीं थी रात । दुल्हन बानी कोयल कौआ दूल्हा, चमगादड़ था पेड़ पर झूला । अ गई कोयल के द्वार पर बारात, होने लगी नोटों की बरसात । मन में बहुत ही खुश था कौआ, मटरी नाउन दे आई बोलौआ । खग राज गरुड़ जी आये, संग मंत्री हंशराज को लए । गौरैया मौसी बतख नानी आई, कोयल क लिए अंगू

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स्वरचित रामायण - बाल काण्ड

30 जनवरी 2015
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जब भार बढ़ा पृथ्वी पर, प्रगट भये भगवान ! अवधपुरी में जन्मे, बनके रघु कुल भानु !! १!! चौथे रिपुदमन तीजे लखन, दूजे भरत महान ! पहले जनमे बैकुन्ठ, अधिपति राम सुजान !!२!! एक बार कौशिक ने ठाना, महा यज्ञ अनुष्ठान ! रक्षा हेतु वो लेने आये, दशरथ प्रिय सुत राम !!३!! राह में मिली जब ताड़का, हँस के किया गुमान

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स्वरचित रामायण - अयोध्या काण्ड

2 फरवरी 2015
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हुई तैयारी राज तिलक की, फुके दासी ने कान ! कहा रानी मांगो राजा से अपने दो वरदान !!१!! पहला वर रानी ने माँगा,भरत को अवधपुर धाम ! दूजा वर चौदह वरस रहे वन में,लक्ष्मी पति श्री राम !!२!! तीन लोग वन को चले,लखन सिया संग राम ! शत शत शत प्रभु को, ‘निर्भय’ का सप्रेम प्रणाम !!३!! केवट ने प्रभु पार उतारा, न

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यक्ष प्रश्न

3 फरवरी 2015
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पांडवों के वनवास के बारह वर्ष समाप्त होनेवाले थे. इसके बाद एक वर्ष के अज्ञातवास की चिंता युधिष्ठिर को सता रही थी. इसी चिंता में मग्न एक दिन युधिष्ठिर भाइयों और कृष्ण के साथ विचार विमर्श कर रहे थे कि उनके सामने एक रोता हुआ ब्राम्हण आ खड़ा हुआ. रोने का कारण पूछने पर उसने बताया – “मेरी झोपडी के बाहर अर

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कुँएं का मेढक

4 फरवरी 2016
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मैं निकला एक कुंए के पास,देखा मैंने उसमे अनायास !जल में तैर रहा था भुजंग,चिल्ला रहे थे जल विहंग !तभी दृष्टि पड़ी मेरी उस ओर,एक मेढक लटका था ईंट की कोर !मैंने देखी दशा उस दादुर की,जैसे लग रही थी चमगादुर की !मैंने उठाया रस्सी और घट,डाल दिया उसमे झटपट !वह उछलकर घट पर चढ़ा,मैंने ऊपर खीचा वह मेरी ओर बढ़ा !ब

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