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क्या नेता जी की मौत के बारे में कोई पांचवा सच कभी सामने आएगा?

1 नवम्बर 2015

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कुंवर समीर शाही

फैजाबाद। अयोध्या से सटे फैजाबाद में सरयू नदी के तट पर गुमनामी बाबा की समाधि है जिसपर जन्म की तारीख लिखी है 23 जनवरी। संयोग है कि यही तारीख नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मतिथि भी है। जबकि मृत्यु की तारीख के सामने तीन सवालिया निशान लगे हैं। समाधि पर अंकित इन सवालिया निशानों की तरह ही गुमनामी बाबा भी सवालों और रहस्यों के घेरे में हैं। नेताजी के परिवार की जासूसी करवाए जाने के मुद्दे पर मौजूदा दौर में छिड़ी राष्ट्रव्यापी बहस के बीच गुमनाबी बाबा कौन थे यह बहस भी अवध में तेज हो चली है। नए सिरे से यह धारणा जोर पकड़ रही है कि गुमनामी बाबा दरअसल नेताजी ही थे। जो गुमनामी में यहां में रहे और यहीं 1985 में अंतिम सांस ली। 16 सितम्बर को उनके 3०वें निर्वाण दिवस के अवसर पर फैजाबाद के सुभाष चन्द्र बोष राष्ट्रीय विचार मंच के तत्वाधान में श्रद्धांजलि सभा का भी आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान के संयोजक शक्ति सिंह सहित शहर के सभी प्रबुद्धजनो ने गुमनामी बाबा को भावभीनि श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर शक्ति सिंह ने कहा कि गुमनामी बाबा को नेताजी होने में कोई संदेह की गंुजाइश अब नही बचती है। उन्होने बताया कि ताइवान ने कहा कि 1945 में उनके देश में कोई विमान हादसा नहीं हुआ। सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट खारिज कर दी। मगर, गुमनामी बाबा के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मुखर्जी ने भी जांच की थी। एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता से बात करते हुए उन्होंने भी ये शक जताया था कि गुमनामी बाबा सुभाष चंद्र बोस हो सकते थे। लेकिन सवाल ये है कि जो शख्स कभी भी अंग्रेजों के सामने नहीं झुका, वो एक छोटे से कस्बे में गुमनाम जिदगी क्यों बिताएगा। इसीलिए नेता जी के बहुत से रिश्तेदार भी गुमनामी बाबा के बारे में खबरों को सिर्फ कहानी ही मानते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या नेता जी की मौत के बारे में कोई पांचवा सच कभी सामने आएगा? यह विषय न केवल न्यायालय के संज्ञान में है बल्कि देश का आम आवाम भी अब इस बात को जानने को लेकर काफी इच्छुक है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोष थ्ो। वही दूसरी ओर भाजपा फैजाबाद के जिलाध्यक्ष रामकृष्ण तिवारी ने कैडिंल मार्च निकालकर रामभवन जहां गुमनामी बाबा ने अपनी अंतिम सांस लिया था उस कमरे को राष्ट्रीय संग्रहालय बनाने की भी मांग की है। सुभाष चन्द्र बोष राष्ट्रीय विचार मंच के संयोजक शक्ति सिंह कहते है कि जिस कक्ष में गुमनामी बाबा रहते थ्ो वह आज भी धरोहर के रूप मे संरक्षित है। सरकार गुमनामी बाबा के रहस्य से पर्दा शीघ्र हटाये।

गौरतलब है कि कई ऐसी वजहें हैं जो यह माननेवालों की धारणा तो बल देती हैं कि फैजाबाद शहर के रामभवन में रहे भगवन उर्फ गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। ऐसा मानने वालों में फैजाबाद के सिविल लाइंस स्थित रामभवन के निवासी गुरु बसंत सिह और शक्ति सिह मानते हैं कि उनके घर में वर्ष 1983 के मध्य से 16 सितंबर 1985 तक निवास करने वाले गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। अब सुभाष बोस के ही नाम पर राष्ट्रीय विचार केंद्र का संचालन करने वाले शक्ति सिह कहते हैं- भगवन उर्फ गुमनामी बाबा अयोध्या और फैजाबाद में दो चरणों में करीब दस वर्ष रहे। इस बीच उन्होंने सीतापुर नैमिषारण्य में भी प्रवास किया। बस्ती जनपद में भी कुछ वक्त बिताया। उनका यह प्रवास वर्ष 197० के बाद से वर्ष 1985 तक रहा। इस बीच बिल्कुल नेताजी जैसे दिखने वाले भगवन वर्ष 1983 में रामभवन आए। 

शहर के एक निजी चिकित्सक डॉ. आरपी मिश्र के माध्यम से गुमनामी बाबा का संपर्क पूर्व नगर मजिस्ट्रेट और शक्ति सिह के दादा ठाकुर गुरुदत्त सिह से हुआ। तब यह कहा गया कि एक दोस्त के बाबा बीमार हैं। लिहाजा गुमनामी बाबा को रामभवन में रखा गया था। व्हील चेयर से बाबा को रात में डेढ़ बजे उनके घर लाया गया था। वहां उनसे मिलने सीमित लोग आते थे। कुछ लोग कार से भी देर रात आते थे और सुबह होने से पहले ही चले जाते थे। चिट्ठियां भी आती थीं। गुमनामी बाबा ज्यादातर लोगों से पर्दे के पीछे रहकर बात करते थे। वह किसी के सामने नहीं आते थे। उनकी अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। वह कई भाषाएं जानते थे। करीब दो वर्ष तक भगवन उर्फ गुमनामी बाबा ने रामभवन में ही निवास किया। लोग उन्हें देख नहीं पाते थे लेकिन उनको लेकर घिरे रहस्य के कारण उन्हें भगवन जी कहने लगे। 

16 सितंबर वर्ष 1985 में गुमनामी बाबा का निधन हुआ। उस दिन राम भवन की गतिविधियों के गवाह रहे अयोध्या-फैजाबाद के लोगों का कहना है कि उस दिन गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी के करीबी डॉक्टर आरपी मिश्र और पी बनर्जी सुबह से बार-बार उनके कमरे से अंदर-बाहर आ-जा रहे थे। दोपहर देर तक गुमनामी बाबा की मौत की खबर फैल चुकी थी। लिहाजा रामभवन के बाहर जमावड़ा लगने लगा था। लोगों में सबसे ज्यादा कौतुहल इस बात को लेकर था कि पता करें गुमनामी बाबा दिखते कैसे थे। स्थानीय प्रशासन भी पहरा बिठा चुका था और पल-पल की जानकारी जिला प्रशासन के मार्फत तत्कालीन राज्य सरकार के कर्ता-धर्ताओं को पहुंचाई जा रही थी। बताया जाता है कि डॉ. मिश्र और कुछ अन्य लोग आपस में कलकत्ता वालों को सूचना दे दिए जाने की बातें कर रहे थे। बहरहाल बेहद गोपनीय तरीके से सरयू किनारे गुप्ताघाट पर बाबा का अंतिम संस्कार कर दिया गया। जहां बाद में समाधि बनवाई गई। गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके कमरे से जो सामान बरामद हुआ उसने ही सबसे पहले बाहर की दुनिया के मन में यह सवाल उठाया कि कहीं यह शख्स नेताजी तो नहीं थे? वजह कि सामान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की तस्वीरों के अलावा सबसे ज्यादा चिट्ठियां मिलीं जो कलकत्ता से लोग लिखते थे। इनमें आजाद हिद फौज के पवित्र मोहन राय, लीला राय और समर गुहा आदि प्रमुख थे। इतना ही नहीं जब उनके निधन के बाद उनके नेताजी होने की बातें फैलने लगीं तो नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से फैजाबाद आईं और गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान देख कर यह कहते हुए फफक पड़ीं थीं यह सब कुछ उनके चाचा का ही है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजादी की लड़ाई में बहुत से लोगों ने काम किया था। ऐसी ही हस्तियों में एक थीं 1922 में नेताजी के संपर्क में आईं क्रांतिकारी लीला रॉय, जिन्हें यकीन था कि नेता जी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई। नेता जी की तलाश उन्हें फैजाबाद के आयोध्या तक ले गई थी, जहां गुमनामी बाबा नाम के एक साधू के बारे में चर्चा थी कि वो ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस हैं। उनसे मुलाकात के बाद लीला रॉय ने कहा था कि उन्हें यकीन है कि गुमनामी बाबा ही नेता जी हैं। हालाकि नेताजी सुभाष क्रांति मंच के राष्ट्रीय प्रधान एवं आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के सचिव प्रो० वीपी सैनी ने कहा है कि गुमनामी बाबा सुभाष चन्द्र बोष नही थ्ो। उनका आरोप है कि केन्द्र सरकार नेताजी को लेकर साजिश रच रही है। इसके तहत नेताजी को गुमनामी बाबा करार देकर नेताजी के बारे में सच्चाई को दबाने का प्रयास कर रही है। प्रो० सैनी का यह भी दावा है कि दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद नेताजी की रूस जाने के योजना थी इसके पुख्ता प्रमाण है। उन्होने यह भी कहा है कि रूस सरकार ने उनका स्वागत करने के बजाय उन्हें गिरफ्तार कर लिया था तथा साइबेरिया की जेल में कैद कर लिया।उन्होने कहा है कि इसकी जानकारी देश के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू को थी। उन्होने कहा है कि यूपीए सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिर्पोट खारिज कर दिया। लेकिन इस मामले पर बात करने वाली भाजपा अब सत्ता में आने के बाद इस रिर्पोट को क्यों नही स्वीकार कर रही है। उनका साफ कहना है कि अब तक की साजिशो को छुपाने के लिए अब नई साजिश ये रची गई है कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा को नेताजी सुभाष चन्द्र बो

स साबित किया जाय। 

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