संयुक्तराष्ट्र संघ में चल रहे भयंकर भ्रष्टाचार का अभी-अभी पर्दाफाश हुआ है। शीर्ष स्तर पर हुए भ्रष्टाचार की ऐसी खबर आई है कि उस पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। संयुक्तराष्ट्र की महासभा का अध्यक्ष रिश्वत ले सकता है, यह बात कल्पना के परे है लेकिन अब यह एक सच्चाई बन गई है। 2013 में इस महासभा के अध्यक्ष जॉन एश थे, जो कि एंटीगुआ और बरबूदा के राजदूत थे। यह पद संयुक्तराष्ट्र में दूसरे या तीसरे नंबर का बड़ा पद माना जाता है। इस जॉन एश ने चीनी व्यापारियों के माध्यम से लगभग 13 लाख डाॅलर की रिश्वत खाई। खाई तो और भी है लेकिन 13 लाख डाॅलर के अकाट्य प्रमाण मिल चुके हैं। क्यों खाई, उसने यह रिश्वत? इसलिए कि संयुक्तराष्ट्र में सुधार की प्रक्रिया के लिए जो दस्तावेज उसकी देख-रेख में बन रहा था, या तो उसे बनने ही न दे या उसे ऐसा कर दें कि उसका कोई महत्व ही न रह जाए। यही हुआ। कुछ हफ्ते पहले वह दस्तावेज़ जब पेश किया गया तो वह निरर्थक सिद्ध हो गया।
चीनी व्यापारियों ने ऐसा क्यों करवाया? इसलिए कि चीनी सरकार नहीं चाहती है कि सुरक्षा परिषद् का विस्तार हो और भारत भी उसमें चीन की बराबरी पर आ बैठे। महासभा के वर्तमान अध्यक्ष सेम कुटेसा की भी इस मामले में मिलीभगत मालूम पड़ती है। संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान की मून को यह सब जानकर गहरा धक्का लगा है। दुनिया की इस बड़ी संस्था की प्रतिष्ठा पैंदे में बैठ गई है।
जॉन एश के इस षड़यंत्र को पकड़ा है, न्यूयार्क में स्थित भारतीय मूल की एक महिला जज ने! प्रीत भाभड़ा नामक इस तेजस्वी जज ने एश की गिरफ्तारी की घोषणा कर दी है। प्रीत का कहना है कि एश का भांडा फूटते ही कई अन्य मामले भी सामने आएंगे और उसे डर है कि सं. रा. में भ्रष्टाचार ही कहीं शिष्टाचार न बन गया हो। यह संयुक्तराष्ट्र संघ कहीं संयुक्त भ्रष्टाचार संघ न बन गया हो। इस जॉन एश कांड से यह सबक भी मिलता है कि संयुक्तराष्ट्र की संपूर्ण वित्त-व्यवस्था की जांच की जानी चाहिए।