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श्रीमदभास्कराचार्यजी विरचिता लीलावती : आधुनिक सन्दर्भ में उपयोगिता तथा प्रासंगिकता

27 अप्रैल 2017

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भास्कराचार्य (जन्म शक 1036 अर्थात 1114 ईसवी) और लीलावती के नामों से लोग भली भांति परिचित हैं। आचार्य भास्कर ने अपने ग्रन्थ “सिद्धांत शिरोमणि” की रचना शक 1073(1151 ईसवी) में की थी। सिद्धांत शिरोमणि मुख्यतः दो भागों (1)गणिताध्याय (2)गोलाध्याय में विभाजित है। गणितध्याय को पुनः 2 भागों लीलावती तथा बीजगणित में विभाजित किया गया है। कुछ विद्वान इसे 4 भागों में इस प्रकार बांटते है-(1) लीलावती(या पाटी गणित) (2)बीजगणित(या अव्यक्त गणित) (3)गणिताध्याय (4) गोलाध्याय ।

सिद्धांत शिरोमणि का प्रथम भाग पाटी गणित जो लीलावती नाम से विख्यात है एक सुव्यवस्थित प्रारम्भिक पाठ्यक्रम है, आज के युग में भी अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता अक्षुण्ण रखे हुए है। इस ग्रन्थ में गणित विद्या को अत्यंत सरस ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसके प्रारम्भिक पाठ आजकल के हाईस्कूल स्तर के हैं जैसे- इष्टकर्म, त्रेराशिक, क्रय विक्रय सूत्र, त्रिभुज तथा चतुर्भुज के क्षेत्रफल, वृत और गोले का क्षेत्रफल आदि। लेकिन कुछ अंतिम अध्याय जैसे कुट्टक प्रकरण, अंकपाश ग्रेजुएट स्तर के भी हैं। हमारे देश के 20वीं सदी के महान गणितज्ञ श्री सुधाकरजी द्विवेदी(1860-1910 ई॰) तथा श्रीनिवास रामानुजन(1887-1920 ई॰) जिनमें से प्रथम प्राचीन परंपरा से सिद्धान्त गणित के अनुशीलनकर्ता थे तथा द्वितीय पाश्चात्य गणित के अनुशीलनकर्ता थे, दोनों ही इंगलिश और संस्कृत दोनों भाषाओं के विद्वान थे (प्रथम का सन्दर्भ-काशी की पांडित्य परम्परा, विश्वविध्यालय प्रकाशन, वाराणसी तथा द्वितीय का सन्दर्भ- पृष्ठ-4, श्रीनिवास रामानुजन, नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली-16)। अतः आजकल के गणित के विद्यार्थियों को इनसे प्रेरणा लेते हुए गणित के साथ-साथ इंगलिश और संस्कृत भी सीखनी चाहिए और इनमें कुशलता प्राप्त करनी चाहिए। इसके लिए लीलावती का चयन उपयोगी है। लीलावती के 2 या 3 श्लोक अर्थ सहित याद कर लेने चाहिए। कुछ श्लोक तथा प्रश्न दिये जा रहे है-

अस्ति त्रैराशिकं पाटी बीजम च विमला मतिः ।

किमज्ञातः सुबुदधीनामतों मंदार्थ मुच्यते ॥

अर्थ- त्रैराशिक ही पाटी गणित है और निर्मल बुद्धि ही बीज(अव्यक्त) गणित है। अतः सुबुद्ध जनों के लिए कुछ भी अज्ञात नहीं है फिर भी मैं मंदबुद्धियों के लिए इस गणित भेद को कह रहा हूँ।

सबको “हंस” और “मानसरोवर” शब्द बहुत अच्छे लगते है। विशेषकर मानसरोवर में हंसों के तैरने की कल्पना बहुत रोमांचक होती है अतः हंसों से संबन्धित गणित के कुछ प्रश्न लिखे जा रहे है-

यातं हंसकुलस्य मूलदशकं मेघागमे मानसं

प्रोडडीय स्थलपद्मिनी वनमगा दष्टांशकोऽम्भस्तटान्।

बाले। बाल मृणालशालिनी जले केलिक्रिया लालस

दृष्टं हंसयुगत्रयं च सकला यूथस्य संख्यां वद ॥

अर्थ- वर्षा ऋतु आने पर जलाशय के तट पर स्थित हंस समूह के वर्गमूल का दश गुना भाग मानसरोवर चले गए। अष्टमाश भाग अर्थात 1/8 भाग उड़ कर स्थलपद्मिनी(कमलिनी) वन पर चला गया। और हे बाले! हंसों के 3 जोड़े कोमल मृणाल ((बाल)नवीन कमाल की डंठल) से शोभायमन जल में अत्यंत प्रीतिपूर्वक क्रीडा करते देखे तो कहो उस समूह में कितने हंस थे। [O tender girl, out of swan in a certain lake ten times the square root of the number went away to Mansa Sarovar on the advent of the rain, 1/8th the number went away to a forest named Sthla Padmini. Three pairs of swans remained in the tank engaged in the water sports. What is the total number of swans] (Ans- 144 swan)

बाले मरालकुलमूलदलानि सप्त तीरे विलास भर मन्थरगाण्यपश्यम ।

कुर्वच्च केलिकलहं कलहंसयुग्मं शेषं जले वद मरालकुलप्रमाणम् ॥

अर्थ- हे बाले! किसी हंस समूह के मूल का सप्त गुणित आधा (7/2) केली क्रीडा करता हुआ नदी के तट पर देखा और बाकी एक जोड़ा जल में क्रीडा करता हुआ जल के भीतर देखा। हे बाले तो हंसों की कुल संख्या बताओ। [ O girl! Of a group of swan, 7/2 times the square root of the number are playing on the shore of a river (or tank). The two remaining once are playing with amorous water. What is the total number of swans](Ans-16)

यदि आपको लीलावती में रुचि बहुत बढ़ गई हो तो आप निम्न में से कोई पढ़ सकते है-

(1) लीलावती संपादक- प्रो रामचन्द्र पाण्डेय,

चौखंभा कृष्ण दास अकादमी, पोस्ट बॉक्स न॰-1118, K 37/118, गोपाल मंदिर लेन, गोलघर, वाराणसी-221001 ।

Chawkhmbaseries.com

(2) खेमराज श्रीकृष्ण दास http://www.khe-shri.com

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