त्रिभुज के क्षेत्रफल के बाद हाईस्कूल ज्यामिति में त्रिभुजों की
सर्वांगसमता(Congruency) तथा समरूपता(Similarity) की प्रमेयें सबसे
महत्वपूर्ण हैं। ये सबसे मूलभूत भी हैं क्योंकि किसी भी बहुभुज को अनेक त्रिभुजों
में बाँटा जा सकता है। अत: त्रिभुज की ज्यामिति का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है।
किसी भी त्रिभुज में तीन भुजायें तथा तीन कोण होते हैं (चित्र-1)। इन्हें त्रिभुज
के अंग या अवयव कहते हैं। इस प्रकार त्रिभुज के 6 अंग होते है जिन्हें मापा जा
सकता है। भुजा को स्केल से तथा कोण को चाँदे (Protractor) या थियोडोलाइड से
मापा जाता है।
त्रिभुजों की सर्वांगसमता :— परिभाषा के अनुसार किन्ही दो त्रिभुजों को
सर्वांगसम तब कहा जाता है यदि एक को दूसरे पर रखने से वह(पहला), दूसरे को
पूरा-पूरा व सही-सही ढक ले। इस प्रकार किन्हीं सर्वांगसम त्रिभुजों के सभी अवयवों
(तीनों संगत भुजाओं तथा तीनों संगत कोणों) के माप समान होते हैं। परन्तु एक रोचक
तथ्य यह है कि दो त्रिभुजों की सर्वांगसमता सिद्ध करने के लिए केवल तीन ही विशिष्ट
अवयवों की समानता की पुष्टि पर्याप्त है। त्रिभुजों की सर्वांगसमता का प्रतीक
चिन्ह @ है। त्रिभुजों की
सर्वांगसमता की पुष्टि के लिए निम्न प्रमेयें है (इन सभी में अवयवों का
क्रम वही होना आवश्यक है जो प्रमेय में दिया गया है) —
क्रम सं0 |
सर्वांगसमता प्रमेय |
अवयव |
(1) |
भुजा-कोण-भुजा सर्वांगसमता प्रमेय, |
2 भुजाऐं, 1 कोण |
(2) |
कोण-भुजा-कोण (भुजा बीच की है) सर्वांगसमता प्रमेय, |
2 कोण, 1 भुजा |
(3) |
कोण-कोण-भुजा (भुजा बीच की नहीं है बल्कि किसी एक दिए गए कोण के सामने की
है), |
2 कोण, 1 भुजाऐं |
(4) |
भुजा-भुजा-भुजा सर्वांगसमता प्रमेय, |
3 भुजाऐं |
(5) |
समकोण-कर्ण-भुजा सर्वांगसमता प्रमेय, |
1 कोण, 2 भुजाऐं |
उपरोक्त सभी प्रमेयों में कम से कम एक भुजा अवश्य है। प्रथम प्रमेय में केवल
1 कोण है जो अनिवार्य रूप से बीच वाला है। दूसरी तथा तीसरी प्रमेयें एक जैसी ही हैं
क्योंकि इन दोनों में ही दो कोण हैं और किसी त्रिभुज के दो कोण ज्ञात होने पर
तीसरा कोण सदैव ही ज्ञात हो जाता है (तीनों कोणों का योग 180 होता है) और तीनों
कोण ज्ञात होने पर भुजा सदैव ज्ञात कोणों के बीच में रहेगी अत: तीसरी प्रमेय को
सदैव दूसरी प्रमेय के रूप में लिखा जा सकता है। पाँचवीं प्रमेय समकोण त्रिभुज की
है जिसमें कर्ण व एक अन्य भुजा ज्ञात होने पर बोधायन-पाइथागोरस प्रमेय द्वारा
तीसरी भुजा ज्ञात हो जाती है और तीनों भुजायें ज्ञात होने पर त्रिभुज का
निर्धारण(निश्चय, ज्ञान ) हो जाता है। किसी भी त्रिभुज के उपरोक्तानुसार तीन अवयव ज्ञात होने पर शेष
तीन अवयव त्रिकोणमिति के उपयुक्त सूत्रों की सहायता से ज्ञात किए जा सकते हैं।
त्रिभुजों
में कोण-कोण-कोण द्वारा कोई सर्वांगसमता नहीं होती है। तथा भुजा-भुजा-कोण (इसे
कोण-भुजा-भुजा भी कह सकते हैं) की समानता की स्थिति में स्थिति सदैव सर्वांगसम
की नहीं होती है। इसे संदिग्ध स्थिति(Ambiguous Case) कहते है। इस
स्थिति में हो सकता है कि एक त्रिभुज बने या दो त्रिभुज बनें। विशेषत: यदि दिया
गया कोण न्यूनकोण हो तथा उस कोण की(दी गई) सम्मुख भुजा, उस कोण से(दी गई) संलग्न
भुजा की तुलना में छोटी हो तब दो त्रिभुज बनते है। चित्र-2 में कोण-भुजा-भुजा समान होते हुए
भी दो त्रिभुज बन रहे हैं अर्थात त्रिभुज ABC तथा त्रिभुज ABD की
कोण-भुजा-भुजा समान हैं, परन्तु दोनों भिन्न त्रिभुज हैं।
त्रिभुजों की समरूपता:— समान आकार वाले बहुभुजों को समरूप कहा जाता
है। इसके लिए दो प्रतिवन्ध हैं (1) उनके संगत कोण बराबर हों (2) उनकी संगत भुजाओं
की लम्बाईयां आनुपातिक हों। परन्तु त्रिभुजों के बारे में एक रोचक तथ्य यह है
कि दोनों प्रतिबन्धों में से कोई एक प्रतिबन्ध सन्तुष्ट हो रहा हो तो दूसरा
अपने आप सन्तुष्ट हो जाता है। त्रिभुजों की आधारभूत आनुपातिकता प्रमेय में यही उपरोक्त तथ्य सिद्ध किया जाता
है। त्रिभुजों की समरूपता का प्रतीक चिन्ह ~ है । किन्हीं दो
त्रिभुजों की समरूपता की पुष्टि के लिए निम्न प्रमेय हैं–
क्रम सं0 |
समरूपता प्रमेय |
अवयव |
(1) |
कोण-कोण-कोण समरूपता प्रमेय, |
3 कोण |
(2) |
कोण-कोण समरूपता, |
2 कोण |
(3) |
भुजा-भुजा-भुजा समरूपता, |
3 भुजाऐं |
(4) |
भुजा-कोण-भुजा समरूपता, |
2 भुजा, 1 कोण |
बोधायन-पाइथागोरस प्रमेय की उपपत्ति में कोण-कोण समरूपता तथा आधारभूत
आनुपातिकता प्रमेय का प्रयोग होता है।
त्रिभुजों की सर्वांगसमता तथा समरूपता के गुणों के अनुप्रयोग:—
त्रिभुजों की सर्वांगसमता तथा समरूपता के गुणों के दैनिक जीवन में अनेक प्रयोग
होते हैं। सर्वांगसमता के गुण का प्रयोग मशीनों के कल पुर्जों के निर्माण में भी होता
है। क्योंकि एक विशेष प्रकार के सभी कल पुर्जे सर्वांगसम होने चाहिए (बल्कि होते
ही हैं) , ताकि एक पुर्जे के खराब होने पर उसे दूसरे से बदला जा सके। सर्वांगसमता तथा समरूपता के गुणों के कुछ रोचक
अनुप्रयोग निम्न हैं-
- नदी को पार किए बिना नदी की चौडाई
ज्ञात करना (चित्र-3)
- बृक्ष पर चढ़े बिना बृक्ष की ऊंचाई ज्ञात करना (चित्र-4)
- भौतिक विज्ञान में अभिकेन्द्र त्वरण के सूत्र की
उपपत्ति में (चित्र-5)
- भौतिक विज्ञान में पतले लेंस के सूत्र की उपपत्ति में (चित्र-6)
इन अनुप्रयोगों के चित्र तथा विधि का विवरण निम्न है-
1॰ नदी को पार किए बिना
नदी की चौड़ाई ज्ञात करना:—
इसके लिए एक रस्सी या नापने वाला फीता तथा एक बाँस की आवश्यकता
होती है।
कार्य विधि--
(1) सबसे पहले नदी
के दूसरे किनारे पर स्थित कोई दूर से दिखने बाली स्थिर वस्तु P जैसे कोई वृक्ष (या झाडी या पत्थर आदि) को ढूंढते है
(2) फिर अपनी ओर के किनारे
पर चलकर उस स्थान पर पहुँचते है जहां पर वृक्ष P से स्वयं की दूरी न्यूनतम हो। इस स्थिति में वृक्ष से स्वयं
की दूरी नदी के वहाव की दिशा के लम्ववत भी होती है।
(3) अब नदी के
किनारे पर चलकर कोई दूरी QA लेंगे।
(4) दूरी QA का
मध्य विन्दु M ज्ञात करेंगे (रस्सी को आधे से मोड़कर)
(5) उस मध्य
बिन्दु M
पर बाँस गाढ़ देंगे।
(6) अब विन्दु A से
नदी के लम्बवत उस बिन्दु तक पहुंचेंगे जहां पर से बाँस M तथा
वृक्ष P एक सीध में दिखाई दें। चित्र में यह बिन्दु B है ।
(7) दूरी BA नदी
की चौड़ाई के बराबर है ।
प्रमाण— इसका प्रमाण
कोण-भुजा-कोण सर्वांगसमता से निम्न प्रकार से दिया जा सकता है-
त्रिभुज DPQM तथा
त्रिभुज DBAM में,
कोण ÐQ = कोण ÐA (प्रत्येक समकोण है)
QM = AM (M, AQ का मध्य बिन्दु है)
कोण ÐPMQ = कोण ÐBMA (शीर्षभिमुख कोंण {vertically opposite}
हैं)
\ त्रिभुज DPQM @ त्रिभुज DBAM (कोण-भुजा-कोण
सर्वांगसमता से)
\ PQ = BA
(सर्वांगसम
त्रिभुज संगत अवयब से)
अब दूरी BA को माप सकते हैं यह नदी की चौड़ाई PQ
के बराबर है ।
2॰ बृक्ष पर चढ़े बिना बृक्ष की
ऊंचाई ज्ञात करना:-
स्टेशनरी की दुकान पर मिलने बाले ज्योमेट्री बॉक्स में एक
450 का सेट-स्क्वायर(गुनिया) भी होता है। यह समकोण समद्विबाहु त्रिभुज (Isosceles Right
Triangle) होता है, अर्थात समकोण बनाने बाली दोनों भुजाएँ समान लंबाई की होती हैं । इसी की
सहायता से मोटे गत्ते का एक उपकरण बनाते हैं। पहले मोटे गत्ते के ऊपर सेट स्क्वायर
रखकर पैन्सिल से निशान बनाकर काट लें। उसकी समकोण बनाने बाली दोनों भुजाओं में से
एक भुजा क्षैतिज रखकर दूसरी को बृक्ष के समांतर कर लेते है (अनुमान से ही या एक
भुजा में साहुल सूत्र बांधकर)। फिर अपनी आँख से कर्ण के अनुदिश देखते हुए बृक्ष की
चोटी को देखते हैं और आवश्यकता अनुसार
चलकर आगे या पीछे हो जाते हैं। फिर बृक्ष से अपनी दूरी माप लीजिये। त्रिभुज की समरूपता के नियम से यह दूरी बृक्ष
की ऊंचाई के बराबर होगी।