
माँ माना शक्ति दादी :- भारतवर्ष के राजस्थान राज्य में हर प्रान्त में दैविक शक्ति से सम्पन महापुरुष वीर,एवं भक्त हुए हैं जो धर्म रक्षक एवं जीव रक्षक रहें हैं जिनको राजस्थान के लोकदेवता के रूप में पूजा जाता हैं । जैसे रामदेवजी,जाम्भोजी ,तेजाजी,गोगाजी, कंवर केसरिया जी , भोमियाजी, हरिराम जी , सती माताएं भी यंहा देवी के रूप में पूजी जाती हैं । इन्ही लोकदेवता में माँ शक्ति दादी का नाम भी आता है , जो पतिव्रत धर्म परायण और सूर्य भगवान और गौ माता की सेवा करते थे । कथाओं से ऐसा ज्ञात होता है वो उच्च कोटि की एक योगिनी भी थी । इनका जन्म १५वीं सदी में बीकानेर (जांगल प्रदेश) के निकट मेघासर गांव में गुर्जरगौड़ उपाध्याय ब्राह्मण कुल में हुआ और इनका विवाह बीकानेर के कोटासर गांव में कंगला जोशी भगवत परायण ब्राह्मण कुल में हुआ । उस समय कोटासर गांव हर प्रकार से समृद्ध और भक्ति भाव से ओतप्रोत था । १५वीं सदी को भक्ति काल की सदी माना जाता हैं इस समय में समूर्ण भारत में एनेकानेक महापुरुष सन्त भक्तो ने जन्म लिया । जिनकी कथाऐं भक्तमाल ग्रन्थ में सविस्तार से लिखित हैं ।
राजस्थानमरुप्रदेशजननीं कोटासरे राजितां ।
मानानामपितामहीं भगवतीं,लक्ष्मीमुपाध्यायजां!।
चामुण्डाऽड़्कसुशोभितां रविनिभां शक्तिं महायोगिनीम् ।
देवीं विप्रकुलात्मजां सुविमलां सेवेसतीमम्बिकाम्.!!
राजस्थान धोरों की धरती की जननी,कोटासर नामक ग्राम में विराजित,दादी माना नाम की भगवती,उपाध्याय परिवार में जन्मी,कुलदेवी चामुण्डा की गोद में सुशोभित,सूर्य के समान तेज वाली शक्ति व महायोगिनी,ब्राह्मण कुल में उत्पन्न,सभी दोषो से रहित सती अंबिका का मैं सेवन करता हूं..
शार्दूलविक्रीडितम् छंद...
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शक्तिस्वरूपां धनबुद्धिदात्रीं ,गौसेविकां त्वां च पितामहीं त्वाम्!
दूर्गांशमानां कुलसुंदरीं त्वां,सतीस्वरूपां प्रणमामि नित्यं!!
शक्ति के स्वरुप वाली,धन और बुद्धि की दात्री,गायों की सेविका पितामही (दादी),मां दुर्गा के अंश माना देवी, कुल की सुंदरी और सती स्वरुपा मां को मै नित्य प्रणाम करता हूं ..!!
इंद्रवज्रा छं
जय माँ शक्तिचामुंडा
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माँ शक्त्ति दादी कोटासर मुख्य मंदिर प्रतिमा
शक्ति दादी
नाम - श्रीमाना देवी
(पतिव्रत तेज से शक्ति)(इसी कारण इनका नाम शक्ति पड़ा- भगवन शिव की अर्धांग्नी सती कि तरह पति विरह में प्राण त्याग ने वाली पतिव्रता स्त्री को सती या शक्ति कहा जाता हैं)
जन्म -वि.सं●१५२७सप्तमी मेघासर
तिरोभाव -वि.सं● १५५२,ई●सन् 1495
मुख्यमन्दिर -कोटासर बीकानेर (राज)
लोकदेवता - सनातन धर्म
।।दोहा।।
जग में देवी जोशीणी,ध्याऊँ में दिन अरु रात।
कोटासर में आप विराजो,जोशीकुल री मात।।
स्थान जानकारी
महाभारत काल में जिस स्थान को जाांगल प्रदेश केे नाम से जाना जाता था इसी स्थान को कन्नौज (उ.प्र) से आए राव सीहा जी के वंशज जौधपुर के संस्थापक रावजोधा के महान धर्मात्मा वीर पुत्र रावबिका ने श्री करणीमाता की आज्ञा से विक्रम संवत १५४५ के बैसाख में अपनी राजधानी के रूप में स्थापित करके जांगल प्रदेश का बीकानेर नाम रखा था । बीकानेर के स्थापना के पीछे इतिहास में कई तरह की कथाएँ मिलती हैं । इसी बीकानेर से 50.कि.मी दूर रेल मार्ग पर सूडसर रेलव स्टेशन और राज मार्ग से सेरूणा से दुलचासर इन दोनों कस्बों से कोटासर गांव 10km दूर हैं । इस गांव के बारे में ऐसी मान्यता है कि ये बीकानेर के बसने से बहुत पुराना है । इस प्रकार बीकानेर रियासत से पूर्व में कई गांव उल्लेख है जो बीकानेर से भी प्राचीन हैं । कोटासर जाने के साधन एवं रास्ते 1. बीकानेर दिल्ली उत्तर पश्चिम रेल मार्ग पर सूडसर रेलव स्टेशन से दुलचासर होते हुए कोटासर 10 कि.मी हैं । यंहा सूडसर रेलव स्टेशन से रिक्शा आदि बहुत से साधन उपलब्ध है । 2. बीकानेर जयपुर NH11 राज मार्ग में सेरूणा से दुलचासर (बीकानेर की तरफ से सेरूणा) या लखासर से दुलचासर (श्री डूंगरगढ़ की तरफ से लखासर) से 20 कि.मी पड़ता है यंहा से भी बस एवं रिक्शा टेम्पू साधन उपलब्ध हैं। कोटासर वर्तमान में तो छोटा सा गांव हैं पर कहा जाता पहले ये बहुत बड़ा नगर था । राजस्थान में प्राचीन काल में विशेष पानी की कमी से कई गांव उठ गए थे । ऐस ही इस गांव से भी बहुत सारे लोग अन्यत्र चले गए । पर ये गांव आज शिक्षा,कृषि व्यपार,संसाधन ,पानी इत्यादि में सम्पन हैं आज भी जब अशिवन माष नवरात्रि में मेला लगता है तब इसी गांव के अन्यत्र रहने वाले यंहा आते हैं । कोटासर में दो मेला प्रधान हैं जिसमे लोग दूर दूर से आते हैं , एक कोटासर भोमियाजी महाराज का जो भादों की शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को होता है और दूसरा माँ शक्ति दादी का जो अशिवन माष की नवरात्री में सप्तमी तिथि को होता हैं । इस छोटे से गांव में कई दिव्य और भव्य मंदिर है जैसे नखत बन्ना , हरिराम जी , शिवजी, ठाकुर जी ,हनुमान जी इत्यादि इनके सुन्दर देवालय हैं , गांव में सभी वर्ण के लोग बड़े प्रेम एवं भाई चारे से रहते हैं । बीकानेर जिले का धोरों के बीच में बहुत सुंदर गांव जो हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र हैं । आने वाले व्यक्ति के मन को ये सुन्दर मरुस्थल हर लेता है । इस मरुभूमि के लिए कवियों ने कहा:-
केसर निपजै न अठै, न ही हीरा निकलन्त | सिर कटिया खग झालणा, इण धरती उपजंत||
यहाँ केसर नहीं निपजती,और न ही यहाँ हीरे निकलते है | वरन यहाँ तो सिर कटने के बाद भी तलवार चलाने वाले वीर उत्पन्न होते है |
धोरां घाट्यां ताल रो, आंटीलो इतिहास | गांव गांव थरमापली, घर घर ल्यूनीडास ||
यहां के रेतिले टीलों,यहां की घाटियों और मैदानों का बडा ही गर्व पुरित इतिहास रहा है |यहां का प्रत्येक गांव थरमापल्ली जैसी प्रचण्ड युद्ध स्थली है तथा प्रत्येक घर मे ल्यूनीडास जैसा प्रचण्ड योद्धा जन्म चुका है | लेवण आवे लपकता, सेवण माल हजार | माथा देवण मूलकनै, थोडा मानस त्यार ||
मुफ्त में धन लेने के लिए व धन का संग्रह करने के लिए तो हजारों लोग स्वत: ही दौड़ पड़ते है ,किन्तु देश की रक्षा के लिए अपना मस्तक देने वाले तो बिरले ही मनुष्य होते है, ऐसे वीर इस मेवाड़ और मारवाड़ में जन्मे हैं
जीवन चरित्र
ज्ञाग वैराग्य भक्ति तप तीर्थों की धरा राजस्थान जंहा मीरा की प्रेम भूमि मैडता,भगवान कपिल की वैराग्य भूमि कोलायत, ब्रह्मा जी की ज्ञान भूमि पुष्कर,गालव ऋषि की तपस्थली गलता जी,कर्मा बाई जी करमेति बाई जी की भक्ति भूमि सीकर नागौर,महाराणा प्रताप, जयमलजी, पताजी, राणा सांगा,राणा कुम्भा जैसे एनेकानेक वीरों की मातृ भूमि राजस्थान रही हैं, भक्ति और तप सौर्य का अंकुर पहले से ही इस धरा पर विद्यमान था ,इसी भक्ति काल में मीराबाई सूरदासजी तुलदासजी कबीर जी करणीमाता आदि महापुरषों का वह लोक देवता का प्रागट्य हुआ उसी १५वीं सदी में व्रतमान के बीकानेर(क्यों कि माताजी के प्रागट्य के समय में बीकानेर कि स्थापना नही हुई थी बीकानेर कि स्थापना सम्बत१५४५के वैशाख में हुई थी बीकानेर बस ने के ठीक ७/८साल बाद ही माताजी ने अपनी इह लोक कि लीला को समरण कर लिया था) बीकानेर जिला के मेघासर गांव के पूज्य पण्डित श्रीतुलछीरामजी गुजरगौड़ उपाध्याय के घर में कुलदेवी माँ चामुंडा के वरदान स्वरूप एक कन्या ने जन्म लिया । जिनका नाम शास्त्रज्ञों ने "माना" रखा क्यों की इनको देवी का स्वरूप ही माना इसलिए यही नाम रखा ( चामुण्डा चण्डी अवतारा।शक्ति सरूप जानत जग सारा ।।9 )। इनकी बाल्य काल की अवस्था एक दम योगिनी की तरह शांत स्वभाव कि थी । माँ चामुंडा के वरदान सरूप होने वाली बालिका का चित्त भी हमेसा माँ आदि शक्ति चामुंडा के चरणों में लगा रहता था ।
अलौकिक शक्ति एवं सौंदर्य के साथ कन्या शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा समान थोड़े ही समय में यौवन हो गए । माता पिता ने इनका विवाह बीकानेर के ही पास कोटासर ग्राम् के गुजरगौड़ ब्राह्मण कंगला जोशी भरद्वाज कुल में करवा दिया ।
१५ वी शदी में कोटासर नगर में पूज्य पण्डित श्रीकिशना रामजी हुए उनके पुत्र पण्डित श्रीहेमाराम जी हुए हेमाराम जी की धर्मपत्नी श्रीमति गंगादेवी जी के गर्भ से एक अद्भुत तेज वाले बालक का जन्म हुआ जिन में विप्रकुल शिरोमणि वीर विद्वान भगवान श्री परशुरामजी के समान ब्राह्मण एवं क्षत्रिय दोनो गुण पाए गए इनका नाम परम् पूज्य श्री कचरुराम जी जोशी था भगवती श्री मां मानादेवी का विवाह इनके साथ हुआ ।( ये जानकारी मुझे सरदारशहर के भोजूसर निवासी श्री राजेन्द्र जी राव की पोथी से प्राप्त हुई)
इनके पति वीर धीर शस्त्रज्ञ व शास्त्रज्ञ थे उस काल के राजा महाराज इनको बुलाते थे और अपनी समस्याओं का निराकरण भी करवाते थे । राज घरानों में इनका बहुत सन्मान था। ऐसा मानना है कि उस समय ये गांव किसी नगर के सदृश्य था । ससुराल पक्ष में भी धन धन्य बैभव सम्पति कि कोई कमी नहीं थी । भगवती माँ माना देवी की नित्य दिनचर्या थी पति,गौ,सन्त,सूर्य,तुलशी एवं माता पिता (सास ससुर) की श्रद्धा पूर्वक सेवा करने का नियम । समय वैतीत होने पर इनको एक पुत्र रत्न की भी प्राप्त हुआ । उसी समय इनके पति किसी राजा की सहायता के लिए एक बार सेना में युद्ध के लिए जातें हैं । ऐसी जन श्रुति सुनने अधिक पाई जाती हैं ।पर माँ माना देवी जब प्रस्तु गृह में थी उसी समय इनके ( इस समय ई.स.1451 से 1526 तक दिल्ली पर लोदी वंश का शासन था) में पति सेना में वीरगति को प्राप्त हो गए । ये सुचना इनको बच्चा हुआ है जानकर बताई नहीं गई पर दैविक योग से एक छोटे बालक से इनको ये बात ज्ञात हो गई तब इन्होंने अपनी अंतर दृष्ट देख कर सोचा जब परमेश्वर तुल्य पति देव भी धरा धाम पर नही तो में क्या करूँ जीवित रहे कर और जैसे भगवान श्री कृष्ण के वियोग में माँ कुन्ती और पाण्डवों ने धरा छोड़ दी थी जिस प्रकार राम के वियोग में दशरथ जी ने शरीर को त्याग दिया था उसी प्रकार माँ ने भी सूर्य भगवान से प्रार्थना की। माँ बोली- हे प्रभो! यदि मेने तन मन से अपने पति को ही परमेश्वर माना है तो मेरा शरीर इसी समय योगाग्नि में भस्म हो जाए और ऐसा कहते हुए अपने पुत्र को गोद लेकर मन्त्र शक्ति से शक्ति ने अग्नि प्रगट करके उस अग्नि में अंतर ध्यान हो गई (इसी कारण इनका नाम शक्ति या सती पड़ा- भगवन शिव की अर्धांग्नी सती कि तरह पति विरह में प्राण त्याग ने वाली पतिव्रता स्त्री को सती या शक्ति कहा जाता हैं) जिस समय आप ने लीला स्मरण की तब सम्बत १५५२था ( पंद्रह सौ बावन गउ धामा।माना भयो सक्ति को नामा।।21) और उनको एक ही पुत्र हुआ था इस हिसाब से वो लगभग चौबीस पच्चीस वर्ष की आयु तक धरा धाम पर रहे होंगे ।
इनका जन्म मीरा बाई से भी पूर्व का हे इस हिसाब से
लगभग ई.सन्.1470 यानी विक्रम संवत १५२७ में इनका जन्म हुआ था ऐसा माना जाता है। निज धाम गमन ईसा.सन्.1495 में यानी विक्रम.संवत १५५२ में हुआ ।
उसके बाद कथा मिलती की कुछ समय बाद उसी स्थान पर माँ के उसी रूप की हूबहू पाषाण प्रतिमा प्रगट होती जंहा ये अग्नि में अंतर ध्यान हुए थे। ये शिला अंकित भू प्रगट प्रतिमा आज भी सुरक्षित है।
आज कोटासर गांव में मरुधर के रेतीले धोरों के विच में भगवती माँ माना शक्तिदादी का भव्य विशाल मंदिर है । माताजी के मंदिर के आगे प्रसिद्ध क्षत्रीय वीर वर गौ रक्षक श्रीभोमियाजी महाराज का भी विशाल मंदिर है । माँ माना शक्ति दादी का यंहा पर आश्विन मास की नवरात्री में ७ को बड़ा मेला लगता है और दूर दूर यात्री आते हैं राजस्थान हरियाण इत्यादि प्रान्तों से एनेकानेक पैदल यात्री दर्शन करने आते हैं ।
।।पर अभी तक मेरी खोज चल रही हैं ।। जिसमे इनके पति वह सास ससुर माता पिता के नाम प्राप्त करने की कौसिस कर रहे हैं । एक सज्जन मुझे वर्ष 2013 में मिले थे जो आयु में वृद्ध थे । उन्होंने शक्ति माता जी के पति का नाम पं. गजोधर जी जोशी बताया पर मुझे ऐसा अन्यत्र मुझे कोई प्रमाण नहीं मिला । किन्तु शक्ति दादी के समय में १५वीं सदी में राव दूदाजी मैडता के राजा थे । मैडता में चारभुजानाथ जी के मंदिर में जो पण्डित जी थे वो भी पं गजोधरजी जोशी थे। मैडता बीकानेर से दूर नहीं और उस काल में विद्वान् लोग सर्वत्र जाया भी करते थे जैसे की हमने पहले ही आपको बताया हैं इनके पतिदेव उच्च कोटि के शास्त्रज्ञ एवं शास्त्रज्ञ थे , तथापि हमारे लिए ये परीक्षण का विषय है । गजोधर जी जोशी का सम्बधन भक्तिमति मीरा बाई के पदों में भी मिलता हैं जिनको मीरा जी ने भी पदों में जूना जोशी के नाम से संबोधित किया हैं। क्यों की शक्ति दादी का चरित्र 523 वर्ष पुराना होने के कारण पूर्ण रूप से हमे कोई जानकारी प्राप्त नहीं हैं । जो प्राप्त हैं उसको पूरा लिख नहीं सकते उसमे कई प्रकार के संसय हैं । एक सज्जन वर्ष 2016 में मुझे मिले जिन्होंने कहा उनके पास ये जनकारी हैं । तो माँ की कृपा से अगली नई जानकारी आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने की कौसिस करूँगा ।
( पण्डित श्री गजोधर जी वाली जानकारी राजेंद्र जी राव जी से मिलने के पूर्व की अतः ऊपर श्री कचरुराम जी वाली जानकारी पूर्ण एवं विश्वशनीय है । अधिक जानकारी के लिए फोन करे 8769619655 )
इस कथा के कुछ अंश मुझे वृद्ध सुधिजनो से एवं रावजी के द्वारा मिली हैं ।जिसमे हमारे वृद्धजनों का अतुलनीय सहयोग रहा है। में उन सबका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ।
माँ श्रीमाना शक्तिदादी का चालीसा आरती वह भजन की रचना मातृ कृपा एवं दैविक योग से सम्बत२०७०के नवरात्री सप्तमी को हुई जिसका प्रकाशन विगत वर्षों में हो चूका हैं।
आज माँ भक्त नित्य माँ के आगे चालीसा पाठ करते हैं। जंहा तक राजस्थान के इनेक प्रान्त में रहने वाले भक्तों तक हमने पुस्तिका पहुंचा दी है। इसके अलावा हरियाणा ,पंजाब,गुजरात कर्नाटक ,आसाम आदि क्षेत्र में रहने वाले भक्तों तक भी चालीसा पहुँच चूका हैं । हमे माँ कृपापात्र भगतों के कॉल आते हैं तब वह बताते हैं और हमे इस खोज वह चालीसा की रचना के लिए खूब स्नेह आशीष भी देते हैं ।
इसमें कोई त्रुटि रही हो तो हमे क्षमा करें
एवं हमे गलती का एहसास करवाएं ताकि आगे सुधारी जा सके ।
निवेदन आभर व्यक्तकर्ता व लेखक
बालशुक श्रीराधेजी महाराज(जोशी)..✍️
श्री माँ शक्तिदादी चालीसा
श्रीगुरु गणपति शारदा,नमन् वीर हनुमान ।
सक्ति गुण वरणंन करूँ,दीज्यो भगती मोहे ज्ञान।।
निर्मल यश वरणंन करूँ,सक्ति दादी को आधार ।
उपाध्याय कुल में प्रकासिया,ज्यांरी महिमा अपरम्पार ।।
|| चौपाई||
हे सक्ति दादी भगत हितकारी ।
भगत जनन की प्राणान् प्यारी ।।1
काली दुर्गा रूप भवानी।
चामुण्डा संग सक्ति महारानी ।।2
आदि अंत को पार न पाऊँ।
मति अनुरूप सक्ति गुण गाउँ ।।3
चामुण्डा चण्ड मुण्ड संहारी।
कुलदेवी माँ शरण तिहारी।।4
सक्ति से ब्रह्मा प्रकट भु करहि।
पालन विष्णु सक्ति से सरहि।।5
शंकर सक्ति से करे संहारा।
भई सक्ति जगत आधरा ।।6
भरद्वाज कुल ब्राह्मण जानी।
ब्रह्मा मुख से प्रकट बखानी ।।7
जोशी वंश कुँ पावन कीन्हो।
जनम उपाध्या कुल में लीन्हों ।8।
चामुण्डा चण्डी अवतारा।
शक्ति सरूप जानत जग सारा ।।9
उपाध्याय वंश प्रगटी महतारी।
मुख प्रसन माना अवतारी।।10
अद्भुत तेज मुख पर छाये।
पितु जननी मन में हर्षाये ।।11
बाल पने में ध्यान लगावे।
मात् पिता संग हरि गुण गावे।।12
मेघासर माँ पीहर बतायो।
माना नाम मात धरायो।।13
मरुधर देश बीकाणे मांही।
कोटासर जोशी घर ब्याही।।14
नगर कोटासर मंगलाचारा ।
गावे सुमंगल गीत अपारा।।15
जब से दादी कोटासर आई।
नगर मंहु सुख सम्पत्ती छाई।।16
मात पिता गौ सेवा करती।
कर प्रणाम भूमि पग धरती।।17
कुलदेवी चामुण्डा ध्यावै।
धुप दिप दई भोग लगावै।।18
विधना की गति टारी ना जाये।
पति परमेश् स्वर्ग सीधाये।।19
सात सतियों का सुमिरन कीन्हा।
पुत्र हाथ ले तन तज दीन्हा।।20
पंद्रह सौ बावन गउ धामा।
माना भयो सक्ति को नामा।।21
माता की ममता अधिकाई।
देव रूप कुल तारण आई।।22
सक्ति दादी का रूप बणाया।
नर नारी सब शरणे आया।।23
कोटासर में मंदिर सोवेे
।लाल ध्वजा गुमद् फेरावे।।24
मरुधर देश में धाम विराजे।
झालर शंख नगारा बाजे।।25
कली काल में आप पधारे।
परचा देहि सकंट सब टारे।।26
शक्ति कृपा सुरतरु की छाया।
हरहि दरिद्र सुधरहिं काया।।27
कर में आपके बालक साजे।
अपने जन के कारज साजे।।28
सुदी सातम् को मेला भारी।
अशिवन मास की महिमा न्यारी।।
29चुड़ो चुंदड़ी मात चढ़ावे।
अमर सुहाग की आशीष पावे।।30
प्रेम सहित जो पलना चढ़ावे ।
निपुत होई वो पूत खिलावे ।।31
थारी महिमा को पार ना पावे।
जो ध्यावे इच्छित फल पावे।32।
दादी नाम की महिमा भारी।
परचा लागे है अति प्यारी।।33
प्रथम करहिं कुलदेवी पूजा।
धरेहि ध्यान सक्ति का दूजा।।34
सत् स्वरूप शक्ति महारानी।
दर्शन करत हियें हर्षानी।।35
दुःख अनैक जगत में पाये।
हम सब तेरी शरणे आये।।36
हम बालक तू मात हमारी।
मेटो कुसंकट आरत भारी।।37
अनगिन रूप शक्ति भवानी।
"राधेजोशी"चरित बखानी।।38
प्रेम सहित जो जपत चालीसा।
भुत प्रेत सब मिटेहि कलेशा।।39
भगत जोशी शरण में आयो।
दादी चालीसा भण के गायो।।40.
|| दोहा||