shabd-logo

मजदूरी - कहानी

21 नवम्बर 2022

25 बार देखा गया 25

मजदूरी

“ बापू ! बापू  ! क्या आज भी आप काम पर नहीं जाएंगे ? क्या हम आज फिर से भूखे ही रहेंगे ?” नन्ही सोना ने मचलते हुये अपने पिता नन्हकू से प्रश्न किया ।
नन्हकू दिहाड़ी मजदूर था । अभी भी अपनी टूटी सी खाट पर पसरा हुआ था और सोना जो उसकी बेटी थी कहने को सोना थी लेकिन तन पर उसके एक बड़ी सी फटी फ्रॉक जो उसके साइज से बहुत बड़ी थी लटक रही थी, बिखरे से बाल जिनको समेट कर एक डोरी के द्वारा बांध दिया गया था । आँखों और चेहरे से भोलापन झलक रहा था, नाम अनुरूप सोना के पास इतना ही था ।
“ जाऊंगा !! जान मत खा , भूख से मर नहीं जाएगी “ भावहीन सा बैठा हुआ नन्हकू तंबाकू का पैकेट फाड़ कर मुंह मे डालते हुये बोला ।
“ बापू कल भी अम्मा ने कुछ नहीं दिया था एक सूखी रोटी ही दी थी सब्जी भी नहीं थी ।” पपड़ी जमे हुये होंठों पर जीभ फेरते हुये वह बोली उसकी आँखों में आँसू लरज रहे थे।
“ हाँ तो क्या हुआ ?” चिढ़ता हुआ बोला नन्हकू ।
उसकी पत्नी रुक्मणी जोर ज़ोर से बड़बड़ाने लगी ‘ “ कब तक बैठा रहेगा घर पर ! बाहर निकलेगा तभी तो काम मिलेगा । कोई घर बैठे तो रोटी नहीं दे जाएगा न । जब देखो घर पर पड़े रहने का बहाना ढूंढ ही लेता है मुआ ।” और हिकारत से नजरें फेर लीं ।
“ क्या करूँ जान दे दूँ ? जब काम नहीं मिल रहा तो !! किस्मत ही खोटी है, जाता तो रोज हूँ ! नहीं मिलता काम क्या करूँ , मै खुद परेशान हूँ तुम सबकी चिंता है मुझे !  ” नन्हकू कुछ बिलखता हुआ सा बोला ।
“ बेटी दो दिन से भूखी है , कल तो मालकिन ने कुछ बचा हुआ खाना दे दिया था उससे सबका काम चल गया था । अब मालकिन चली गईं है अपने बेटे पास और मेरी छुट्टी कर गईं है , मालकिन से कुछ पैसा मांगा था उन्होने साफ मना कर दिया । अब तक पूरे महीने का पैसा एडवांस ले चुकी हूँ दूसरे महीने का मांगा था उन्होने मना कर दिया कि अब वे तीन महीने तक तो रहेंगी नहीं तो काम भी नहीं होगा फिर एडवांस कैसा । ये अमीर लोग होते ही ऐसे है इन्हे कभी किसी की फिकर नहीं होती ये बस अपना देखते है जियो चाहे मरो इनका काम किए जाओ बस ! ” रुक्मणी बोलते बोलते रुकी ।
ननहकू ने समझाया , “ देख जब तू उनसे पहले ही उधार ले चुकी है तो तेरी मालकिन कैसे देगी दूसरे महीने का !  तू चिंता मत कर मै कुछ सोचता हूँ ।” 
कुछ सोच कर वह उठा और अनमने भाव से अपनी टूटी हुई चप्प्लों को पैर मे लटका कर चल दिया । सोच रहा था कहाँ जाए काम भी बंद है कोई नया काम मिलने से रहा ..........
मौसम बहुत खराब था , सुबह से धूप ने अपना दरवाजा नहीं खोला था । चारो तरफ धुंध ही धुंध थी इस कड़कड़ाती ठंड मे लग रहा था मानो रक्त धमनियों मे जम ही जाएगा उस पर आसमान मे छाए बादल सूरज का रास्ता रोके हुये थे । कई दिनों से मौसम का यही हाल था , लोग घरों मे दुबके हुये थे ।  
ननहकू ने कई जगह काम की तलाश की लेकिन नाकाम रहा । सांझ ढले वापस आ गया बेटी बड़ी हसरत से उसकी ओर लपकी : ‘बापू कुछ लाये’ लेकिन खाली हाथ देख बुझे कदमों से वापस हो ली ।
उसने बेटी को समझाया : ‘ मुझे एक बड़ी जगह काम मिला है कल से जाऊंगा , तब तुम्हारे लिए खाने को ले कर आऊँगा । तब तक तू ये प्रसाद खा ।‘ हाथ मे पकड़ा हुआ लड्डू उसको खिला दिया जो रास्ते मे मंदिर के पास से गुजरते हुये किसी ने उसे दिया था ।
बेटी खुश हो गई , कल बापू काम पर जाएंगे फिर पैसे मिलेंगे और वह खाना खा सकेगी । उसका नन्हा कोमल मन हजार सपने सँजोने लगा , सोचते – सोचते बेटी जाने कब सो गई और वह सोचने लगा गरीबी भी एक तरह की बीमारी ही है जिसको होती है वही इसका दंश समझ पाता है। पूरी झोपड़ी में चारों तरफ नजर दौड़ाते हुये उसके मन के दरवाजे पर फिर से अभिलाषा की दस्तक हुयी, “इस बार सोचा था जब काम मिलेगा तो सबसे पहले कमरा पक्का करवाऊँगा, फिर साँस छोड़ते हुये बुदबुदाया यहाँ तो रोटियों के लाले पड़े हुये हैं ।”
कच्ची झोपड़ी जिसे मिट्टी थोप-थोप कर बनाया गया था ऊपर से टूटे दरवाजे, जिसको फटे हुये मोटे कंबल से किसी तरह ढक दिया गया था ताकि ठंड न आए । खेत बिक जाने के बाद गाँव से शहर बड़े चाव से आया था कि शहर में तो बहुत काम है बस करने का जोश चाहिए जो उसके अंदर है। लेकिन समय के साथ – साथ उसका जोश भी ठंडा हुआ जाता था । अब उसे अपने लिए गए निर्णय पर भी कोफ्त होने लगी थी । एक मन करते कि वापस लौट जाए , गाँव जाकर ही कोई काम देख ले! वहां कम से कम लोग तो अपने हैं ! यहाँ तो कोई किसी के दुःख सुख में भी नहीं खड़ा होता । शायद वह जल्दी ही हताश हो गया था । वरना अपनी बिरादरी में अगर कहता तो सभी उसकी सहायता जरूर करते । क्योंकि जिस बस्ती में वह रहता था वहाँ सब एक दूसरे के सुख दुःख में खड़े होना जानते थे । एक दूसरे की वक्त जरूरत सह्यता भी करते थे । आपस दारी की बात थी ।
रुक्मिणी दोपहर को कुछ लकड़ियाँ ले आयी थी कि शायद आज अनाज आयेगा और खाना बनेगा लेकिन अनाज नहीं आया था तो उसने उन लकड़ियों को ठंड से बचने के लिए जला लिया और बीचों बीच रख लिया बेटी को भी वही पास ही सुला लिया और दोनों आग के पास बैठ गए ।  
ठंड बढ़ती जा रही थी , भूखे पेट किसी को नींद भी न आ रही थी । दोनों जग रहे थे ।
रुक्मिणी धीरे से बोली , “ क्या सोचा है कल क्या करोगे ? बिटिया तो किसी भी तरह अब न मानेगी। रोज-रोज उसका मन दुःखाना अच्छा न लग रहा । भूखे पेट तो अब हमसे भी न सोया जाता, पर क्या करें मजबूरी है, हम बड़े हैं कोई तरह सबर रख लेंगे।” फिर उसकी ओर देखते हुये बोली “क्या करोगे अगर कल भी काम न मिला तो ? रुक्मिणी ने आशंका जाहिर की ।
“ तू बुरा काहे को बोलती है ? मिल ही जाएगा ” ननहकू लापरवाही से बोला ।
“ सुनो मै सोचती हूँ कि कल से मै भी काम पर तेरे साथ चलूँगी , सोना को जमना ताई संभाल लेंगी , दोनों मिलकर कमाएंगे तो मजदूरी ज्यादा मिलेगी ।”
“ काम तो मिलने दे पहले!! ........” झुँझलाता हुआ नन्हकू बोला ।
आग की गर्मी से उनके शरीरों में गुनगुनाहट आ गयी और वहीं लेट गए और कब उन दोनों को नींद आई पता ही न चला । अगले दिन सुबह ही रुक्मिणी नहा धोकर बच्ची को जमना ताई के पास छोड़ कर कहीं चली गई , जब नन्हकू  सो कर जागा तो कोई घर मे न था । उसने सोचा चलो नहा धो कर काम खोजने निकलता हूँ ।
रुक्मिणी देखने में बहुत सुंदर न थी लेकिन भरा बदन और तीखे नैन नक्श के कारण वह अच्छी दिखती थी । वह कई घरों मे काम खोजने गई लेकिन उसे काम नहीं मिला वापस उलटे पाँव लौट रही थी , एक जगह बिल्डिंग निर्माण का काम चल रहा था । उसने वहाँ पर काम की की तलाश करना उचित समझा और बिल्डिंग की ओर चल दी । कई मजदूर पुरुष और महिलाएं भी काम कर रही थी उसे आशा की किरण दिखी ।
आगे बढ़ कर वहाँ काम कर रहे लोगों से पूछा ,’ भैया यहाँ काम मिलेगा क्या ?’ उसने एक ओर इशारा कर दिया ,’ वहाँ जाकर ठेकेदार से बात कर लो ।’ वह उधर चल दी , ठेकेदार किसी पर झल्ला रहा था । वह थोड़ा सहमी बाहर ही रुक गई । जैसे ही ठेकेदार बाहर आया वह दौड़ कर उसके पैरों पर झुक गई , “ मुझे काम दे दो साहेब !! मै शिकायत का मौका नहीं दूँगी , साहेब !! मन लगा कर काम करूंगी , बहुत मजबूर हूँ । साहेब मेरी बच्ची दो दिन से भूखी है । ‘ वह झिड़क कर आगे चल दिया , आ जाते है जाने कहाँ-कहाँ से ।‘ वह जरूरत मंद थी उसे वहाँ उम्मीद की किरण दिखाई दे रही थी वह फिर भागी , ‘ साहेब रुको न साहेब !! मुझे बहुत जरूरत है । ‘ ठेकेदार रुका उसको ऊपर से नीचे तक तिरछी नजर से देखा फिर बोला , ‘ ठीक है आओ ऊपर कमरे मे ।’ वह झिझकी पररंतु उसके पास और कोई चारा ही न था उसके पीछे चल दी ऊपर कमरे मे । जब लौटी तो सकुचाती सी निकलती चली गई उसकी मुट्ठी मे कुछ रुपए दबे हुये थे ।
घर पहुंच कर उसने वो पैसे अपनी बेटी के हाथ पर रख दिये , “ मेरी लाड़ो देख माई को काम मिल गया और ये है आज की मजदूरी ।”
ननहकू ने पूछा , ‘तुझे काम मिल गया , कहाँ मिला रे !’
‘ एक बिल्डिंग मे काम किया था । ‘ उसने अनमने भाव से उत्तर दिया ।
ननहकू फिर बोला  ‘ मुझे तो न देता कोई काम ?? तुझे कैसे दे दिया ??” कुछ सशंकित नजरों से उसे घूरा । “ एक बात बता , तो फिर तू कल भी जाएगी न वहाँ , मै भी तेरे संग चलूँगा शायद मुझे भी काम मिल जाए तेरी वजह से।’
रुक्मिणी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे जिसे देख कर ननहकू सकपका गया । वह ठेकेदार की कहानी सुनाने लगी, वह उसे ऊपर के कमरे में ले गया बोला कि उसकी बीवी मर गयी है तो उसके घर पर मुझे रहना पड़ेगा। अच्छे पैसे दूंगा , तुझे कोई कमी नहीं होने दूँगा बस तुझे खुश रखना होगा  ।”  मैं डर के मारे भागने ही वाली थी कि वह आगे बोला मेरी बेटी और मेरी माँ है जो घर पर रहती हैं बच्ची अभी दो साल की है माँ भी बीमार रहती हैं उन दोनों को देखने वाल कोई नहीं है अगर तू उनको खुश रखती है तो तुझे मुँह माँगे पैसे दूँगा । मैंने हाँ कर दी मैंने बोला कि साहब मेरा पति भी खाली है अगर उसको भी आप ईंट गारा के काम पर रख लेते तो ....।” ठेकेदार बोला ठीक है कल से काम पर आ जाओ दोनों , काम देख कर पैसे तय कर लेंगे ।” एक दिन का एडवांस उसी का है।
‘ सच आज के जमाने को देखते हुए मै तो डर ही गई थी कि कहीं ये भी वैसा ही तो नहीं लेकिन वह तो देवता आदमी है । उसको भगवान लंबी उम्र दे ।’

कहानीकार
अन्नपूर्णा बाजपेयी
कानपुर

दोस्तों , नमस्ते,  सतश्री अकाल, गुड इवनिंग और आदाब अर्ज है।
कहानी की श्रृंखला में आज मैं लेकर आई हूँ एक और नई कहानी ।
सभी रचनाओं के मौलिक अधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं कृपया कोई भी बिना अनुमति सामग्री का दुरुपयोग न करे।

डॉ अन्नपूर्णा बाजपेयी की अन्य किताबें

1

मजदूरी - कहानी

21 नवम्बर 2022
0
0
0

मजदूरी “ बापू ! बापू ! क्या आज भी आप काम पर नहीं जाएंगे ? क्या हम आज फिर से भूखे ही रहेंगे ?” नन्ही सोना ने मचलते हुये अपने पिता नन्हकू से प्रश्न किया । नन्हकू दिहाड़ी मजदूर था । अभी भी अपनी टूट

2

एकाकी - कहानी

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

एकाकीकौशल्या जी को गुजरे अभी दस दिन भी न हुए थे कि उनके तीनों बच्चों मे उनकी चीजों को लेकर झगड़ा आरंभ हो गया। जैसा कि अधिकतर घरों मे होता है कि घर के स्वामी या स्वामिनी का महाप्रयाण हुआ नहीं कि संपत्ति

3

लघुकथा - गले की फाँस

16 दिसम्बर 2022
1
0
1

लघुकथा - गले की फाँस" सुनते हो ! ऑफिस जाने से पहले तीन हजार रुपये ए टी एम से निकाल कर दे जाना!" रसोईघर से लगभग चिल्लाते हुए सुरेखा ने अपने पति नीरज से कहा ।"क्यों?" चौंकते हुए नीरज ने पूछा ।"अभी परसों

---

किताब पढ़िए