🙏 वंदे मातरम् साथियों,
*** मनुष्य जीवन ***
नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। वह सोचने लगा, अहा! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं ??
कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा। भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता। अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह विभोर होता रहा।
नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली। वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ। सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई। चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी।
कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया।
शारीरिक सुख में लिप्त मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह होती है, जो आहार और आश्रय के लिए ही जीता है और अपने जीवन को व्यर्थ के कामों में नष्ट कर देता है।
🙏 साथियों, हमारा जीवन भी कौए के जीवन की तरह न हो जाए इसलिए अपना जीवन राष्ट्र के कामों में लगाएं, एक ही धर्म अपनाएँ और वह है राष्ट्र धर्म।
आज हम जातिवाद, प्रांतवाद और घटिया राजनैतिक दलों के कुचक्रों में फंस कर अपने धर्म से अपने राष्ट्र धर्म से विमुख होते जा रहे हैं कही हमारा हाल भी उस कौए की तरह न हो जाए और कहीं ऐसा तो नहीं है कि विकास के नाम पर हम हाथी का मांस नोंच रहे हों और अंत में गुलामी के समुद्र में फंस जाएँ जिसका कोई अंत ही न दिखे और सब कुछ नष्ट हो जाए।
🙏 साथियों, अभी भी वक्त है भीख मांग कर, कर्ज ले कर विकास करना कोई विकास नहीं है उसका एक ही मन्त्र है और वो है स्वदेशी और सिर्फ स्वदेशी।
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स्वदेशी अपनाएँ, देश बचाएं।।
अपना देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपना गौरव
वंदे मातरम्
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