एक दिन गुरू नानकदेव जी नेत्र मूंदकर समाधि स्थित थे । देहाध्यास समाप्त होने पर उनके मुख से यह शब्द निकला -"वाह वाह वाह !" उस परम आनन्द में लीन रहने से उन्हें यह ध्यान ही न रहा कि हम मुख से क्या कह रहे हैं । अब संगत ने वह शब्द सुन लिये और संगत भी जोर जोर से 'वाह वाह' कहने लगी । यह आवाज़ सुनकर गुरू नानकदेव जी की समाधि भंग हो गई ।
उन्होंने संगत से पूछा कि आप लोग वाह-वाह क्यों कह रहे हो ?
सबने प्रार्थना की- महाराज अभी आपके मुख से ये शब्द निकले थे । इसलिए हमने भी जपना शुरू कर दिया ।
गुरू नानकदेव जी यह सुनकर बोले -
जलवा देखा नूर का, नानक कीनी वाह ।
हमने किया देखकर, तुमने देखा क्या ?
गुरू नानकदेव जी की भाई बाले वाली जन्म साखी ।
( श्री स्वरूप दर्शन, पृष्ट संख्या 614 )