सिखों में ‘वाहेगुरु’ बोलने का चलन कैसे शुरु हुआ
एक दिन गुरू नानकदेव जी नेत्र मूंदकर समाधि स्थित थे । देहाध्यास समाप्त होने पर उनके मुख से यह शब्द निकला -"वाह वाह वाह !" उस परम आनन्द में लीन रहने से उन्हें यह ध्यान ही न रहा कि हम मुख से क्या कह रहे हैं । अब संगत ने वह शब्द सुन लिये और संगत भी जोर जोर से 'वाह वाह' कहने लगी । यह आवाज़ स