shabd-logo

common.aboutWriter

मैं एक अंतर्मुखी और संकोची महिला हूँ | बोलने से ज्यादा कुछ करने में विश्वास रखती हूँ | हिन्दी मेरा प्रिय सब्जेक्ट है और मैं हिन्दी के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूँ |

no-certificate
common.noAwardFound

common.books_of

meenadharlekh

meenadharlekh

0 common.readCount
1 common.articles

निःशुल्क

निःशुल्क

meenadharkikavita

meenadharkikavita

मैं कभी-कभी यूँ ही अपने भावों को कविता का रूप दे देती हूँ

0 common.readCount
4 common.articles

निःशुल्क

meenadharkikavita

meenadharkikavita

मैं कभी-कभी यूँ ही अपने भावों को कविता का रूप दे देती हूँ

0 common.readCount
4 common.articles

निःशुल्क

meenadharkikahaniyan

meenadharkikahaniyan

मेरी मूल विधा कहानियां ही हैं |

0 common.readCount
1 common.articles

निःशुल्क

meenadharkikahaniyan

meenadharkikahaniyan

मेरी मूल विधा कहानियां ही हैं |

0 common.readCount
1 common.articles

निःशुल्क

common.kelekh

वंदना

16 अक्टूबर 2017
5
3

हे जग जननी आस तुम्हाराशब्दों को देती तुम धारावाणी को स्वर मिलता तुमसेकण-कण में है वास तुम्हारा |दिनकर का है ओज तुम्ही सेशशि की शीतलता है तुमसेनभ गंगा की रजत धार मेंझिलमिल करता सार तुम्हारा |सिर पर रख दो वरद हस्त माँलिखती रहूँ अनवरत मैं माँहर पन्ने पर अंतर्मन केलिखती हूँ उपकार तुम्हारा || मीना धर

कन्या पूजन !

28 सितम्बर 2017
2
2

आ गई फिर से शारदीय नौरात्र ! चारों तरफ धूम मचीहै, माँ के स्वागत की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं | अब घर-घर माँ की स्थापनाहोगी, उनकी पूजा अर्चना में कोई भी कोई कसर नही उठा रखेगा | हरकोई आपने-अपने स्तर पर माँ को प्रसन्न करने का हर सम्भव प्रयास करेगा | फूल, फल,मेवा, वस्त्र, धूप, दीप, नावैद्य आदि अर

दोहे

28 सितम्बर 2017
3
4

हे भगवन ! वर दीजिए, रहे सुखी संसार |घर परिवार समाज पर, बरसे कृपा अपार ||दीन दुखी कोई न हो, औ सूखे की मार |अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||मीना

धूमिल चाँद

23 अगस्त 2017
3
4

*धूमिलचाँद*हिन्दुस्तान भवन काहॉल पूरा भरा हुया था | हर स्टाल पर महिलाओं की भीड़ उमड़ी हुई थी | कुछ पत्रकारफोटो क्लिक करने में लगे थे | मोतियों से बने सुन्दर-सुन्दर मंगलसूत्र..पायल..

धरती की गुहार अम्बर से

19 अगस्त 2017
4
3

प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकलमेरी गोदी जो खेल रहे थे, नदियाँ, जलाशय, पेड़-पल्लवपशु पक्षी सब भूखे प्यासे, हो गये हैं जर्जरभटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसकोप्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |इक की

गृहणी हूँ ना !

18 अगस्त 2017
4
5

गृहणी हूँ ना ! नही आता तुकान्त – अतुकान्तमैं नही जानती छन्द-अलंकार लिखती हूँ मै, भागते दौड़ते, बच्चों को स्कूल भेजते ऑफिस जाते पति को टिफिन पकड़ातेआटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते ब्लाउंज की आस्तीन से पसीना सुखातेअपनी भावनाओं को दिल में छुपाते,मुस्कुराते, सारे दिन की थकन लिए रात में आते-आते बि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए