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दोहे

28 सितम्बर 2017

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हे भगवन ! वर दीजिए, रहे सुखी संसार |

घर परिवार समाज पर, बरसे कृपा अपार ||

दीन दुखी कोई न हो, औ सूखे की मार |

अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||

कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |

अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||

बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |

रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||

मीना

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

दोहे वास्तव मैं बहुत अच्छे हैं .

6 नवम्बर 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

भक्ति एवं आशिर्वाद भरे अनुराग के लिए आपका आभार

1 अक्टूबर 2017

रेणु

रेणु

आदरणीय मीना जी ----- भक्ति - रस में पगे बड़े सरस दोहे पढ़कर मन प्रसन्न है | आपको सस्नेह विजयदशमी की हार्दिक मंगल कामनाएं प्रेषित करती हूँ |

30 सितम्बर 2017

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रचनाएँ
meenadharkikavita
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मैं कभी-कभी यूँ ही अपने भावों को कविता का रूप दे देती हूँ
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गृहणी हूँ ना !

18 अगस्त 2017
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गृहणी हूँ ना ! नही आता तुकान्त – अतुकान्तमैं नही जानती छन्द-अलंकार लिखती हूँ मै, भागते दौड़ते, बच्चों को स्कूल भेजते ऑफिस जाते पति को टिफिन पकड़ातेआटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते ब्लाउंज की आस्तीन से पसीना सुखातेअपनी भावनाओं को दिल में छुपाते,मुस्कुराते, सारे दिन की थकन लिए रात में आते-आते बि

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धरती की गुहार अम्बर से

19 अगस्त 2017
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प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकलमेरी गोदी जो खेल रहे थे, नदियाँ, जलाशय, पेड़-पल्लवपशु पक्षी सब भूखे प्यासे, हो गये हैं जर्जरभटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसकोप्यासी धरती आस लगाए, देख रही अम्बर को |इक की

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दोहे

28 सितम्बर 2017
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हे भगवन ! वर दीजिए, रहे सुखी संसार |घर परिवार समाज पर, बरसे कृपा अपार ||दीन दुखी कोई न हो, औ सूखे की मार |अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||मीना

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वंदना

16 अक्टूबर 2017
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हे जग जननी आस तुम्हाराशब्दों को देती तुम धारावाणी को स्वर मिलता तुमसेकण-कण में है वास तुम्हारा |दिनकर का है ओज तुम्ही सेशशि की शीतलता है तुमसेनभ गंगा की रजत धार मेंझिलमिल करता सार तुम्हारा |सिर पर रख दो वरद हस्त माँलिखती रहूँ अनवरत मैं माँहर पन्ने पर अंतर्मन केलिखती हूँ उपकार तुम्हारा || मीना धर

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