ना मैंने गजल लिखी है, ना कोई गीत गाता हूं,
बस कुछ ख्याल समेटे हैं, उन्हें मैं गुनगुनाता हूं,
अब लिख डालूं वो सब मैं अपने इस रचना में,
जिन बातों को मैं यहां लिखता और मिटाता हूं,
कभी प्रेम कभी हास्य कभी अंगार लिखता हूं,
कभी वो ना समझें कभी खुद समझ ना पाता हूं,
ये मध्यम मध्यम बारिश में कभी मोर सा झूमूं मैं,
आज भी मैं यहां वो कागज की कश्ती बनाता हूं,
-©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
अनूपपुर मध्यप्रदेश