रचना- "नारी तू अविचल है।"
रचनाकार- जितेन्द्र शर्मा
विधा- कविता
तिथी-29/12/2022
नारी!
नारी तू अविचल है।
पंकज सी कोमल है पर द्रढ है तू गिरिवर सी।
सागर सी गहरी है पर लहरों सी चंचल है।
नारी तू अविचल है।
कुल वंश का मान है तुझसे, माता का सम्मान है तुझसे,
पिता का अभिमान है तुझसे,
तू धारा अविरल है!
नारी तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है।
नारी तू अविचल है।।
जीवन का आधार है तुझमे,
ममता, स्नेह, प्यार है तुझमे,
सारा सदव्यवहार है तुझमे।
तू सरिता सी सजल है,
नारी तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है।
नारी तू अविचल है।।
जननी है पालक है, तरू की तू छाया है।
लक्ष्मी है रणचण्डी, मीरा है माया है।।
विष भी है तू अमृत भी,
वीरों का तू बल है।
नारी तू अविचल है!
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है।
नारी तू अविचल है।।