डायरी के सफेद कागज में बड़े – बड़े अक्षरों में बड़े ही सुंदर से लिख डाला रिचा ने “ मेरी मृत्यु का जिम्मेदार कोई भी नहीं है ” । उसने कागज को अच्छे से फोल्ड करके पढ़ने की मेज़ पर रख दिया । अब उसका यहाँ कोई काम नहीं । विचित्र नजरों से अपने कमरे को एक बार देखती है । फिर हाथ में लिए ज़हर की शीशी को देखती है और सोचती है कि बस अब कुछ ही क्षणों के बाद मैं इस दुनिया को अल्विदा कह दूंगी ।
पता नहीं रिचा ने क्या सोचा कि ज़हर की शीशी को मेज़ पर रखकर एकाएक आखिरी बार खिड़की से बाहर देखने लगती है । वह पुरानी यादों में खो जाती है । रूपेश के साथ पहली बार रिचा कॉलेज में मिली थी । रूपेश, रिचा के साथ ही पढ़ता था । रूपेश कॉलेज का सबसे नटखट लड़का था । रिचा उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी । अपने नटखटपन व्यक्त्तित्व के कारण ही एक दिन उसने रिचा का मन मोह लिया । इसके बाद इन दोनों की दोस्ती शुरु होती है । दोनों हमेशा साथ ही रहते थे । धीरे – धीरे रूपेश और रिचा की दोस्ती कब प्यार में बदल गई उन्हें स्वयं ही नहीं पता चला ।
पूरे कॉलेज में रूपेश और रिचा के प्यार की चर्चा होने लगी । वे एक दूसरे के हर पसंद – ना पसंद का हमेशा ख्याल रखते थे । देखते ही देखते दोनों ने कब तीन साल बिता दिए उन्हें खुद भी नहीं पता चला । अचानक रूपेश के वर्ताव में
बदलाव आने लगा । जो रूपेश रिचा से बात करने के लिए पूरे दिन इंताज़ार में बैठा रहता था, आज रिचा के साथ घंटों बात नहीं करता था । रिचा जब भी उसे कॉल करती उसका नम्बर व्यस्त आता । रिचा ने इस बारे में कई बार रूपेश से बात करना चाहा लेकिन रूपेश उस पर ध्यान ही नहीं देता था । शुरु – शुरु में तो रिचा ने इस बात को उतना सिरियस्ली नहीं लिया लेकिन बाद में जब रिचा ने इसका प्रतिवाद करना चाहा तो उन दोनों की लड़ाइयाँ होने लगीं । रूपेश, रिचा से बात नहीं करता था । रिचा अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी उन दोनों के रिश्ते को ठीक करने की
लेकिन रूपेश को शायद ठीक करना ही नहीं था । इस तरह आज शाम को इन दोनों का रिश्ता
खतम हो जाता है ।
-रूपेश तुम अचानक ऐसे कैसे हो गए ?
-ऐसा हो गया हूँ मतलब ? क्या कहना चाहती हो जरा स्पष्ट रूप से बोलो रिचा ?
-तुमने कई बार मेरा अपमान किया है । मुझे इंतज़ार भी करवाते हो । कॉल करने पर फोन नहीं उठाते हो । ज्यादातर तुम्हारा फोन तो बीज़ी रहता है ।
-सुनो रिचा ! इंसान हमेशा एक जैसा रहे यह जरूरी तो नहीं । समय इंसान को बदल देता है । सो मैं भी यदि बदल गया तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है ?
-हाँ । सही कहा कोई गलती नहीं है ।
- मैं अब तुम्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूँ रिचा । आई थिंक हमें अलग हो जाना चाहिए । इसी में हम दोनों की भलाई है ।
-प्लीज रूपेश मुझे मत छोड़ो । मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ । तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊँगी । तुम्हें जैसे रहना है रहो । मुझे कोई दिक्कत नहीं ।
-लिसेन रिचा मैं तुमसे अब प्यार नहीं करता हूँ । इसलिए इस रिश्ते को अब नहीं निभा पाऊँगा । बेहतर होगा तुम इस बात को जल्दि समझ जाओ ।
-तुम यह सब क्या कह रहे हो ? दिमाग ठीक है तुम्हारा ?
-मैंने बहुत सोचा । तुम मेरे स्टेटस की हो ही नहीं । कहाँ मेरी फैमिली और कहाँ...
-रूक जाओ रूपेश । बहुत बड़ी बात कह रहे हो तुम । जब हम साथ थे तब तुमने अपने स्टेटस के बारे में नहीं सोचा ? तब तुम्हें अपनी फैमिली नहीं याद आई ?
-सुनो रिचा वह सब मेरी भूल थी । अब मैं अपनी सारी भूल को ठीक करना चाहता हूँ । मुझे कोई और पसंद है । उसी से शादी करना चाहता हूँ । तुम मेरी ज़िंदगी से चली जाओ और वापस लौट कर कभी मत आना ।
-रूपेश ऐसा मत करो मेरे साथ । मैं सचमुच जी नहीं पाऊँगी तुम्हारे बिना ।
-जी नहीं पाऊँगी । कुछ भी कहती हो । कोई भी किसी के लिए मरता नहीं है । सुनो रिचा ! तुम्हें आगे बढ़ना ही होगा । मैं अब तुमसे नहीं प्यार करता हूँ । मुझे भूल जाओ ।
उस दिन काफी बार मनाने के बाद भी रूपेश नहीं माना । रूपेश के इस हर्कत की वजह से रिचा काफी रोई थी उसदिन । उसके बाद वह अपने घर आ जाती है और सीधा अपने कमरे में चली जाती है । माँ ने कई बार बुलाया लेकिन रिचा ने दरवाजा नहीं खोला । उसने सोच लिया था आज मैं अपने आप को समाप्त कर दूँगी । इस संसार में प्यार की तरह तो कुछ भी नहीं है ना । प्यार ही सबकुछ है । अचानक से माँ के बुलाने से वह अपने कल्पना की दुनिया से बाहफ्र निकलती है । वह सोचती है कि अंतिम समय में एक बार माँ और पापा से मिल लेती हूँ । उसने दरवाजा खोल दिया और माँ के पास चली जाती है । माँ को ऐसे जकड़ लेती है जैसे काफी समय बाद मिली हो । माँ पूछ्ती है क्या हुआ तुझे ? कोई परेशानी है ? चल जल्दि से हाथ मुँह धो ले मैंने तेरी पसंद की खीर बनाई है । माँ फिर कहती है, रिचा बेटा जरा देख तो ये ड्रेस तुझे पसंद है कि नहीं ? उस दिन तू बाज़ार में बार – बार इस ड्रेस को देख रही थी । तब मेरे पास पैसे नहीं थे नहीं तो तभी खरीद लेती यह ड्रेस । अब आज मैंने यह ड्रेस मेरे बचाए हुए कुछ पैसे तथा तेरे पापा से कुछ पैसे
लेकर खरीदा है ।
-तुम भी ना मम्मी ! क्यों खरीद कर लाई यह ड्रेस ? इसकी क्या जरूरत थी ?
-मुझे बहुत बुरा लगता है बेटा । हमारा इतना सामर्थ्य नहीं है कि मैं तेरी हर इच्छा पूरी कर पाऊँ । उसदिन जब तूने इस ड्रेस को देखा था तभी से मेरा मन इस ड्रेस को खरीदने के लिए बेचैन हो गया था ।
अचानक रिचा के पापा की आवाज आती है । रिचा के पापा जलेबियाँ रिचा की माँ को देते हुए कहते हैं – रिचा को जलेबियाँ बहुत पसंद है । इसलिए लौटते समय लेते आया । चलो जल्दि से जलेबियाँ खिलाओ ।
रिचा की आँखों से अश्रु की धारा बहने लगती हैं । वह किसी से कुछ भी नहीं कहती बस चुप चाप अपने कमरे में आ जाती है । कमरे का दरवाजा बंद करते ही वह जोर – जोर से रोने लगती है । कमरे में पहले से ही रिचा का छोटा भाई बैठा था । अचनाक से अपनी बहन को रोते-विलखते देख वह परेशान हो जाता है । वह उससे पूछता है –
-दीदी क्या हुआ है तुम्हें ? किसी ने कुछ कहा है तुमसे ?
-नहीं भाई कुछ भी नहीं हुआ है ।
-अच्छा याद आया । मैंने तुम्हारा डैरी मिल्क ले लिया था, इसीलिए रो रही हो तुम ? कोई बात नहीं दीदी मैं
तुम्हारे लिए कल फिर ले आऊँगा । तुम प्लीज़ मत रो दीदी ।
छोटे भाई की बातें सुनकर रिचा से बर्दाश्त नहीं हो पाया । रिचा जोर – जोर से रोने लगी । उसके रोने की आवाज़ सुनकर मम्मी – पापा भी आ गए । रिचा अपनी मम्मी को पकड़ कर बहुत रोती है । वह सोचती है – प्यार तो मेरे अपने घर में ही है । उस पराए इंसान के लिए मैं आत्महत्या करने जा रही थी । मेरे मरने के बाद उसका तो कुछ भी नुकसान नहीं होता लेकिन मेरे मम्मी – पापा को बहुत दु:ख होता । मैं नहीं होती तो वे लोग किसे इतना प्यार करते । ड्रवर में जो उसने ज़हर की शीशी रखी थी, उसे चुपके से खिड़की से बाहर फेंक देती है । उसके बाद चाँद के उजाले से पूरा घर आलौकिक हो गया । ऐसा लग रहा था मानो उसका जीवन अचानक से अत्यंत सुंदर बन गया है । उस ज़हर की शीशी के टूटते ही पुरानी हर बात टूट कर बिखर जाती और नि:स्वार्थ प्यार रिचा के जीवन का नया अध्याय भी शुरू हो जाता है ।