मेलों का महत्व आस्था एवं विश्वास महत्व के आधार पर मनाया जाता है।भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता है।एवं राजस्थान जगह-जगह मेलों का आयोजन किया जाता है।
जो कि हमारे गांव मैं भी मेले का आयोजन किया जाता है। जो बड़े धूमधाम से आयोजित किया जाता है। जिसमें आस-पास गांव के झंडा या ध्वजा बाबा के यहां लाते हैं एवं बाबा के नाम के भजन या तेजाजी गाते हैं। जिसमें तेजाजी कि गाता(कथा) की जाती है!
इसके पीछे मान्यता है सही कि सर्पदंश या सर्प के काटने पर बाबा के नाम की तांती(दागां) बांध दिया जाता है।इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है।
तेजा दशमी के पर्व की शुरुआत कैसे हुई- लोकदेवता वीर तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गांव के मुखिया थे। वे बचपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष थे।
बड़े होने पर राजकुमार तेजा की शादी सुंदर गौरी से हुई।
एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जाते हैं।
बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं।
रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग (सर्प) घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डसना चाहता है।
वीर तेजा उसे रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, परंतु भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता।
तब तेजा उसे वचन देते हैं- 'हे भाषक नाग, मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गायें छुड़ा लाने के बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डस लेना, यह तेजा का वचन है।' तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग रास्ता छोड़ देता है।
जंगल में डाकू मेणा एवं उसके साथियों के साथ वीर तेजा भयंकर युद्ध कर उन सभी को मार देते हैं। उनका पूरा शरीर घायल हो जाता है। ऐसी अवस्था में अपने साथी के हाथ गायें बहन पेमल के घर भेजकर वचन में बंधे तेजा भाषक नाग की बांबी की ओर जाते हैं।
घोड़े पर सवार पूरा शरीर घायल अवस्था में होने पर भी तेजा को आया देखकर भाषक नाग आश्चर्यचकित रह जाता है। वह तेजा से कहता है- 'तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारूं?' तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ बताकर कहते हैं- 'हे भाषक नाग, मेरी जीभ सुरक्षित है, उस पर डस लो।'
वीर तेजा की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है- 'आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।' उसके बाद भाषक नाग घोड़े के पैरों पर से ऊपर चढ़कर तेजा की जीभ पर दंश मारता है। उस दिन से तेजा दशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है।
एक सत्य पर आधारित लेखन है-
!जो कि राजस्थान के कई जिलों में या गांव में बाबा के मंदिर बे चबूतरे मौजूद है। साथ ही हमारे गांव या आस पास सर्पदंश या सांप के काटने पर बाबा के नाम की तातं(उतरी) बांधी जाती है। जिससे सांप का जहर नहीं चढ़ता है। और वो व्यक्ति बिल्कुल ठीक हो जाता है।
-
लेखक- रमेशबाबू