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प्रमिला अवस्थी की डायरी

प्रमिला अवस्थी

5 अध्याय
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pramila avasthi ki dir

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पुस्तक के भाग

1

निवेदन

31 अगस्त 2015
0
4
3

मैं आज ही शब्द नगरी से जुडी मैं चाहती हूँ कि लोग मुझसे जुड़कर अपने विचारोँ को साझा करें .

2

साहित्यिक

31 अगस्त 2015
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2
2
3

मानव जीवन

31 अगस्त 2015
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7
2

जिंदगी रेत के मानिंद है प्रतिपल क्षरणशील है . मरणधर्मा कैसे अमर्त्य बने ?इसकी कोशिश ही मानव का लक्ष्य होना चाहिए

4

नवनिकाश के बारे में

1 सितम्बर 2015
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1

नवनिकाश पत्रिका का सौवां अंक अक्टूबर में प्रकाशित होगा . मुझे प्रसन्नता है यह जानकर की एक लघु पत्रिका ने इतनी लम्बी यात्रा पूरी की है . हिंदी के साहित्यकारों से अनुरोध है की वे इस अंक के लिए अपनी रचनाएँ भेजें . नवनिकश के बारे में आप हमसे संपर्क कर सकते हैं.

5

चलते रहिये

19 सितम्बर 2015
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3
1

जीवन चलते रहने का नाम है . चौरासी लाख योनियों में चलते चलते हम मानव बने हैं . जो चलता नहीं वह चलायमान हो जाता है . कुछ चलते नहीं चलते हैं . कुछ की जबान चलती है वे वाचाल कहे जाते हैं . मशीन भी न चले तो बेकार हम तो इंसान हैं. पर आज संसद नहीं चलती, स्च्होल नहीं चलते, अस्पताल नहीं चलते हाँ खराब सिक्के च

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